हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाह अन्हु के दौर-ए-खिलाफत में हज़रत अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को चार हज़ार का लश्कर देकर मिस्र रवाना किया
इस दौरान मिस्र का हाकिम मकोकस था उसके पास बेतहासा फ़ौज़ थी इन हालात की खबर हज़रत अम्र बिन आस ने हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु को दी तो उन्होंने दस हज़ार फ़ौज और भेजी और उनके साथ बुजुर्ग सहाबी हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु को सालार मुक़र्रर किया।
हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम के हाथों किला फतेह हुआ इसके बाद इस्कारिया की बारी आई इस्कारिया कि फतेह के बाद हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को मिस्र के गवर्नर मुकर्रर किया!!
एक दिन बहुत से मिस्री हज़रत अम्र बिन आस के पास आये जो उस वक़्त मिस्र के (गवर्नर) थे और कहने लगे
मिस्र का दरिया-ए-नील सूखने लगा है और पूरे मुल्क में पानी की कमी हो गई है खेती भी सूखने लगी हैं पुराने जमाने से हमारा दस्तूर था कि जब दरिया-ए-नील सूख जाता था तो हम कंवारी लड़की को चुन लेते वालिदैन की मर्ज़ी से दिन चुन कर उसको कीमती कपड़े और जेवर पहना दुल्हन बना कर दरिया में ज़िन्दा डाल दिया करते थे। उसके बाद दरिया में पानी जारी हो जाया करता था, बताइए अब हम क्या करें या हमे ये रस्म करने की इजाज़त मरहमत फरमाएं!!!
हज़रत अम्र बिन आस ने फ़रमाया हम इस ज़ुल्म के खिलाफ हैं, इस्लाम किसी हालत में इस बात की इजाज़त नहीं देता है कि किसी बेक़सूर को जिंदा दरिया में डाल दिया जाए उन्होंने कहा मैं हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु को ख़त लिखता हूँ जब तक जवाब न आये आप लोग इन्तिज़ार करो।
हाकिम ने पूरा मामला लिखकर मदीना शरीफ भेजा, हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाह अन्हु ने जब ख़त पढ़ा तो एक तारीखी ख़त लिखा
यहाँ बात क़ाबिले गौर है तमाम पढ़ने वाले इस पोस्ट को तव्वजों कीजिये इसारे की तरफ)
ये रुक्के (ख़त) की इबारत हैं जो इस तरह थी
”ए दरिया-ए-नील अगर तू खुद से जारी हुआ करता था तो हमको तेरी ज़रुरत नहीं है और अगर तू अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से जारी होता था तो मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि तू फिर से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के नाम पर जारी होजा”
आप ने इस ख़त को लिफ़ाफ़े में बंद कर दिया और क़ासिद को दिया कि इसे दरिया-ए-नील को सुनाया जाए फिर उसमें डाल दिया जाए, क़ासिद खत लेकर मिस्र आया तो अहले मिस्र दरिया पर इकट्ठा हुए सब हैरत में थे
खत् में ऐसा क्या है ये लोग इस्लाम मे दाखिल भी नए नए हुए थे तो यक़ीन भी पुख्ता नही था खत पहले खोल कर पढ़ा गया फिर उस खत को दरिया में डाल दिया गया
जैसे ही खत डाला दरिया जारी हो गया और ऐसा जारी हुआ कि जब से आज तक नहीं सूखा है!!!
(तारीख़-ए-दमिश्क)
(जिल्द 17 पेज 328)
100 बात की 1 बात में तो इतना ही कहूँगा
(ये शान है ख़िदमदगारो की सरदार का आलम क्या होगा
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