_"नूर नामा'नाम से एक किताब उर्दू नज़्म में खूब पढ़ी जाती है उस में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पैदाइश का वाकिआ और आप के नूर का किस्सा जिस तरह बयान किया गया है वह बे असल और गलत है किसी मुस्तनद व मोअतबर हदीस व तारीख की किताब में उस का ज़िक्र नहीं ।_
*_ऐसे ही शहादत नामा नाम से जो किताबें हज़रत सय्यदिना इमाम हसन और सय्यदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के वाकिआत व हालात से मुतअल्लिक राइज हैं वह भी अकसर गलत बे सरोपा वाकिआत व हिकायत पर मुश्तमिल हैं।_*
_आला हज़रत फरमाते हैं:_
*_नूर नामे के नाम से जो रिसाला मशहूर है उस की रिवायत बे असल है उसको पढ़ना जाइज़ नहीं।_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद, जि.26,स.610)*
*और फ़रमाते हैं:*
_शहादत नामे नज़्म या नसर जो आजकल अवाम में राइज हैं अकसर रिवायते बातिला व बे सरोपा से ममल और अकाज़ीब मोज़ूआ (गढ़ी हुई झूटी हिकायतें) पर मुश्तमिल हैं ऐसे बयान का पढ़ना सुनना मुतलकन हराम व नाजाइज़ है।_
📚 *फतावा रज़विया, जदीद जि.24 ,स.513*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,188*
*_ऐसे ही शहादत नामा नाम से जो किताबें हज़रत सय्यदिना इमाम हसन और सय्यदिना इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हुमा के वाकिआत व हालात से मुतअल्लिक राइज हैं वह भी अकसर गलत बे सरोपा वाकिआत व हिकायत पर मुश्तमिल हैं।_*
_आला हज़रत फरमाते हैं:_
*_नूर नामे के नाम से जो रिसाला मशहूर है उस की रिवायत बे असल है उसको पढ़ना जाइज़ नहीं।_*
📚 *(फतावा रज़विया जदीद, जि.26,स.610)*
*और फ़रमाते हैं:*
_शहादत नामे नज़्म या नसर जो आजकल अवाम में राइज हैं अकसर रिवायते बातिला व बे सरोपा से ममल और अकाज़ीब मोज़ूआ (गढ़ी हुई झूटी हिकायतें) पर मुश्तमिल हैं ऐसे बयान का पढ़ना सुनना मुतलकन हराम व नाजाइज़ है।_
📚 *फतावा रज़विया, जदीद जि.24 ,स.513*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,188*
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