*【POST 36】क्या जिससे जाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नही होंगी*

अकसर ऐसा होता है। कि इमाम और मुक़तदी के दरमियां कोई दुनियावी इख्तिलाफ हो जाता है। जैसे आज कल के सियासी समाजी खानदानों और बिरादरियों के इख्तिलाफात और झगड़े तो इन वुजूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते है। कि जिससे दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नही होगी यह उनकी ग़लतफहमी है। और वो लोग धोके मे है।
       
*सही बात यह है। कि जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरूस्त है। चाहे उससे आपका दुनियाबी झगड़ा ही क्यूँ  न चलता हो बातचीत दुआ सलाम सब हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते है। नमाज़ की दुरूस्तगी के लिए जरूरी नही है। कि दुनियाबी एतवार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो हां तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेलजोल न करना शरीअत मे सख़्त नापसन्दीदा है।*
   
📖 _हदीस मे है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया:_
       
*मुसलमान के लिए हलाल नही कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे। जब उससे मुलाक़ात हो तो तीन मरतबा सलाम करले अगर उसने जबाब नही दिया तो इसका गुनाह भी उसके जिम्मे है।*

📕 *(अबू दाऊद किताबुल अदब जिल्द 2 सफ़ा 673)*
     
लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक नही रन्जिश और बुराई मे भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी और जो लोग जायी रन्जिशों के बिना पर अपने नफ्स और जात की खातिर इमामो के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं ये खुदा के घरो को वीरान करने वाले और दीने इसालाम को नुकसान पहुंचाने वाले है। इन्हें खुदाए तआला से डरना चाहिए। मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए। कब्र की एक एक घड़ी और कियामत का एक एक लम्हाबड़ा भारी पड़ेगा।

*आला हजरत इमामे अहले सुन्नत रदीअल्लाहो ताला अनहु फरमाते है।*
 
जो लोग बराहे नफ्सानियत इमाम के पीछे नमाज़ न पढ़े और जमाअत होती रहे और शामिल न हों वो सख़्त गुनहगार है।

📗 *(फ़तावा रजविया जिल्द 3 सफ़ा 221)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 38 39*

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