*आज कल काफ़ी जगह अवाम मस्जिद मे किसी को इमामत के लिए रखते है। तो उस से तकरीर कराते हें अगर वह धूम धड़ाके से ख़ूब कूद फांद कर हाथ पांव फेंक कर जोशीले अन्दाज़ मे जज़्बाती तकरीर कर दे तो बड़े खुश होते है। और उसको इमामत के लिए पसन्द करते हैं।यहां तक कि बाज़ जगह तो खुश इलहानी और अच्छी आवाज़ से नाते और नज्में पढ़ दे तो उसको बहुत बढ़िया इमाम ख़्याल करते है। इस बात की तरफ़ तवज्जोंह नसी देते कि उसका कुर्आन शरीफ गलत या सही । उसको मसाइल दीनिया से बकद्रे जरूरत वाक़फियत है या नही। और उसका किरदार व अमल मनसबे इमामत के लिए मुनासिब है या नही।*
अगरचे तकरीर व बयान व ख़िताबत अगर उसूल व शराइत के साथ हो तो उससे दीन को तक़वियतहासिल होती है। और हुई है। लेकिन इसमे भी कोई शक नही कि दीनदारी तक़वा शिआरी और खौफे खुदा अमूमन कम सुखन और सन्जीदा मिजाज लोगो मे ज़्यादा मिलता है। ज़बान जोर और मुँह के मज़बूत लोग सब काम मुँह और ज़बान से ही चलाना चाहते है। और इस्लाम गुफ्तार से ज़्यादा किरदार से फैला है। और आजकल के ज़्यादातर मौलवियो और इमामो के लिए बजाए तकरीर व खितावत के जिम्मेदार उलमाए अहलेसुन्नत की आम फहम अन्दाज़ मे लिखीं हुई किताबें पढ़ कर अवाम को सुनाना ज़्यादा मुनासिब और बेहतर है। खुलासा यह कि आज कल बाज़ जगह लोग जो इमाम के लिए मुक़र्रिर होना जरूरी ख़्याल करते है यह लोग गलती पर है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 40 41*
अगरचे तकरीर व बयान व ख़िताबत अगर उसूल व शराइत के साथ हो तो उससे दीन को तक़वियतहासिल होती है। और हुई है। लेकिन इसमे भी कोई शक नही कि दीनदारी तक़वा शिआरी और खौफे खुदा अमूमन कम सुखन और सन्जीदा मिजाज लोगो मे ज़्यादा मिलता है। ज़बान जोर और मुँह के मज़बूत लोग सब काम मुँह और ज़बान से ही चलाना चाहते है। और इस्लाम गुफ्तार से ज़्यादा किरदार से फैला है। और आजकल के ज़्यादातर मौलवियो और इमामो के लिए बजाए तकरीर व खितावत के जिम्मेदार उलमाए अहलेसुन्नत की आम फहम अन्दाज़ मे लिखीं हुई किताबें पढ़ कर अवाम को सुनाना ज़्यादा मुनासिब और बेहतर है। खुलासा यह कि आज कल बाज़ जगह लोग जो इमाम के लिए मुक़र्रिर होना जरूरी ख़्याल करते है यह लोग गलती पर है।
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 40 41*
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