*【POST 143】सुअर के नाम लेने को बुरा जानना*

*_मज़हबे इस्लाम में सुअर खाना हराम है और उसका गोश्त पोस्त, खूनहड्डी, बाल, पसीना, थूक वगैरा पूरा बदन और उससे ख़ारिज होने वाली हर चीज नापाक है और इस मअना कर सुअर से नफरत करना ईमान की पहचान और मोमिन की शान है, लेकिन कुछ लोग जिहालत की वजह से इसका नाम भी जबान से निकालने को बुरा जानते हैं। यहाँ तक कि बाज़ निरे अनपढ़ गंवार यह तक कह देते हैं कि जिसने अपने मुंह से सुअर का नाम लिया चालीस दिन तक उसकी जबान नापाक रहती है। जहालत यहाँ तक बढ़ चुकी है कि एक मरतबा एक गाँव में इमाम साहब ने मस्जिद में तकरीर के वक़्त यह कह दिया कि शराब पीना ऐसा है जैसे सुअर खाना, तो लोगों ने इस पर खूब हंगामा किया कि इन्होंने मस्जिद में सुअर का नाम क्यूँ लिया यहाँ तक कि इस जुर्म में बेचारे इमाम साहब का हिसाब कर दिया गया।_*

_भाईयो! किसी बुरी से बुरी चीज़ का भी बुराई के साथ नाम लेना बुरा नहीं है। हाँ अगर कोई किसी बुरी चीज़ को अच्छा कहे हराम को हलाल कहे तो यह यकीनन गलत है बल्कि बुरी चीज़ की बुराई बगैर नाम लिए हो भी नहीं सकती। *शैतान, इबलीस ,फ़िरऔन,हामान, अबूलहब और अबूजहल का नाम भी तो लिया जाता है।* ये हों या और दूसरे खुदाए तआला  व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दुश्मन वह सबके सब सुअर से बदरजहा बदतर हैं, बल्कि।इब्लीस,फिरऔन,हामान और अबूलहब का नाम तो कुरआन में भी है और हर कुरआन पढ़ने वाला नाम लेता।_

_खुदाए तआला और उसके महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के जितने दुश्मन हैं और उनकी बारगाहों में गुस्ताख़ी और बेअदबी करने वाले हैं, ये सब सुअर से कहीं ज़्यादा बुरे हैं। ये सब जहन्नम में जायेंगे और जानवर कोई भी हो हराम हो हलाल हो वह हरगिज़ जहन्नम में नहीं जायेगा बल्कि हिसाब व किताब के बाद फ़ना कर दिये जायेंगे।_

*_खुलासा यह है कि सुअर का नाम लेकर उसके बारे में हुक्मे शरअ से आगाह करना हरगिज़ कोई बुरा काम नहीं, ख्वाह मस्जिद में हो या गैरे मस्जिद में, वाज़ व तकरीर में हो या गुफ्तगू में। आख़िर कुरआन में भी तो उसका नाम कई जगह आया है,क्यूंकि अरबी में जिसको खिन्ज़ीर कहते हैं उसी को हिन्दुस्तान वाले सुअर कहते हैं, तो अगर नमाज़ में वही आयतें तिलावत की गई जिनमें सुअर के हराम फरमाने का ज़िक्र है तो उसका नाम नमाज़ में आयेगा और मस्जिद में भी ।_*

📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,154 155*

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