_जनाज़े की नमाज़ आम तौर पर खाली पडे रास्तों और खेतों मैदानों वगैरा में पढ़ी जातीहै। कुछ लोग इन ज़मीनों को नापाक ख्याल करते हुये जूते चप्पल उतार उन पर खड़े हो कर नमाज़ अदा कर लेते हैं तो ऐसा करना जाइज़ बल्कि बेहतर है और नमाज़ दुरूस्त हो जायेगी किसी चीज़ मिटटी,कपड़े,बदन ज़मीन वगैरा के पाक और नापाक होने की तीन सूरतें हैं।_
*_1- यकीन से पता है कि वह पाक है।_*
_2- यकीन से पता है कि वह नापाक है।_
*_3- इस के पाक और नापाक होने में शक है। पता नहीं कि पाक है या नापाक है।_*
_पहली सूरत में तो वह पाक है ही लेकिन तीसरी सूरत में भी जब कि उसके पाक और नापाक होने में शक हो तब भी इस को पाक माना जायेगा नापाक नहीं,नापाक तभी कहेंगे जब नापाकी का यकीन हो या गालिबे गुमान।_
*_कोई भी ज़मीन जब तक इस के नापाक होने का पता न हो वह पाक कहलायेगी आप इस पर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये भी नमाज़ पढ़ सकते हैं।_*
_जूते का तला भी जब खूब पता हो कि इस पर कोई नापाक चीज़ लगी है तभी उस को नापाक कहा जायेगा। सिर्फ शक व शुब्ह की बिना पर नापाक नहीं कहा जा।सकता जूते के तला पाक हो सकता है_
*_उलमा-ए-किराम ने फरमाया कि जूते की तले पर अगर कोई नापाक चीज़ लगी भी हो, उस को पहन कर चला। घास या मिटटी पर कुछ देर चलने से जो रगढ़ पैदा हुई उस से भी जूते का तला पाक हो सकता है।_*
_अब इस सिलसिले में मसाइल की तफ़सील हस्बे ज़ैल है।_
*_ज़मीन अगर नापाक है यानी उस के नापाक होने का यकीन है उस केऊपर नंगे पैर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये नमाज़ पढ़ी नमाज़ नहीं होगी। ज़मीन अगर पाक है या उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि पाक है या नापाक तो उस पर बगैर कुछ बिछाये नंगे पैर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी जा सकती है।_*
_ज़मीन नापाक है लेकिन जूते पहन कर नमाज़ पढी और जूते का तला पाक है नमाज़ सही हो जायेगी। ज़मीन भी नापाक है जूते का तला भी नापाक है। लेकिन जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी नमाज़ हो जायेगी क्योंकि अब उस नापाकी का बदन जिस्म से कोई तअल्लुक नहीं और अगर पहने हो तो वह नापाकी जिस्म का हिस्सा मानी जायेगी।_
*_खुलासा यह है कि ज्यादा एहतियात उसी में है कि जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज अदा करे यह सब से बेहतर और मुहतात तरीका है। आला हज़रत फरमाते हैं: ।_*
_अगर वह जगह पेशाब वगैरा से नापाक थी या जिस के जूतों के तले नापाक थे और उस हालत में जूता पहने हुये नमाज़ पढ़ी उन की नमाज़ न हई। एहतियात यही है।_
*_कि जूता उतार कर उस पर पाव रख कर नमाज़ पढ़ी जाये। कि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में खलल न आये ।_*
📗 *(फतावा रज़विया जदीद 9/188)*
_और एक मकाम पर लिखते हैं। अगर कोई शख्स बहालते नमाज निजासत पर खड़ा हुआ और उसके दोनों पैरों में जूते या जुराबे हैं तो उसकी नमाज़ सही न होगी और अगर यह चीज़ें जुदा है तो हो जाएगी ।_
📚 *(फ़तावा रज़विया जदीद 962)*
*_एक जगह लिखते हैं :- शुबह से कोई चीज़ नापाक नहीं होती कि असल तहारत है।_*
📚 *फतावा रज़विया जदीद जि•4,स•394)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,183 184*
*_1- यकीन से पता है कि वह पाक है।_*
_2- यकीन से पता है कि वह नापाक है।_
*_3- इस के पाक और नापाक होने में शक है। पता नहीं कि पाक है या नापाक है।_*
_पहली सूरत में तो वह पाक है ही लेकिन तीसरी सूरत में भी जब कि उसके पाक और नापाक होने में शक हो तब भी इस को पाक माना जायेगा नापाक नहीं,नापाक तभी कहेंगे जब नापाकी का यकीन हो या गालिबे गुमान।_
*_कोई भी ज़मीन जब तक इस के नापाक होने का पता न हो वह पाक कहलायेगी आप इस पर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये भी नमाज़ पढ़ सकते हैं।_*
_जूते का तला भी जब खूब पता हो कि इस पर कोई नापाक चीज़ लगी है तभी उस को नापाक कहा जायेगा। सिर्फ शक व शुब्ह की बिना पर नापाक नहीं कहा जा।सकता जूते के तला पाक हो सकता है_
*_उलमा-ए-किराम ने फरमाया कि जूते की तले पर अगर कोई नापाक चीज़ लगी भी हो, उस को पहन कर चला। घास या मिटटी पर कुछ देर चलने से जो रगढ़ पैदा हुई उस से भी जूते का तला पाक हो सकता है।_*
_अब इस सिलसिले में मसाइल की तफ़सील हस्बे ज़ैल है।_
*_ज़मीन अगर नापाक है यानी उस के नापाक होने का यकीन है उस केऊपर नंगे पैर खड़े हो कर बगैर कुछ बिछाये नमाज़ पढ़ी नमाज़ नहीं होगी। ज़मीन अगर पाक है या उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि पाक है या नापाक तो उस पर बगैर कुछ बिछाये नंगे पैर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी जा सकती है।_*
_ज़मीन नापाक है लेकिन जूते पहन कर नमाज़ पढी और जूते का तला पाक है नमाज़ सही हो जायेगी। ज़मीन भी नापाक है जूते का तला भी नापाक है। लेकिन जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ी नमाज़ हो जायेगी क्योंकि अब उस नापाकी का बदन जिस्म से कोई तअल्लुक नहीं और अगर पहने हो तो वह नापाकी जिस्म का हिस्सा मानी जायेगी।_
*_खुलासा यह है कि ज्यादा एहतियात उसी में है कि जूते उतार कर उन पर खड़े हो कर नमाज अदा करे यह सब से बेहतर और मुहतात तरीका है। आला हज़रत फरमाते हैं: ।_*
_अगर वह जगह पेशाब वगैरा से नापाक थी या जिस के जूतों के तले नापाक थे और उस हालत में जूता पहने हुये नमाज़ पढ़ी उन की नमाज़ न हई। एहतियात यही है।_
*_कि जूता उतार कर उस पर पाव रख कर नमाज़ पढ़ी जाये। कि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में खलल न आये ।_*
📗 *(फतावा रज़विया जदीद 9/188)*
_और एक मकाम पर लिखते हैं। अगर कोई शख्स बहालते नमाज निजासत पर खड़ा हुआ और उसके दोनों पैरों में जूते या जुराबे हैं तो उसकी नमाज़ सही न होगी और अगर यह चीज़ें जुदा है तो हो जाएगी ।_
📚 *(फ़तावा रज़विया जदीद 962)*
*_एक जगह लिखते हैं :- शुबह से कोई चीज़ नापाक नहीं होती कि असल तहारत है।_*
📚 *फतावा रज़विया जदीद जि•4,स•394)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,183 184*
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