*【POST 167】गमी का चाँद गमी की ईद*

*_इस्लाम में तीन(3) दिन से ज़्यादा किसी मैयत का गम मनाना यानी जान बूझ कर ऐसे काम करना जिस से गम ज़ाहिर हो नाजाइज़ है ऐसे ही किसी के गम में चाँद को गम का चाँद या किसी महीने का गम को महीना कहना मना है।_*

_जिस घर में किसी का इन्तिकाल हो गया हो उस के बाद जब पहली ईद आती है तो इस ईद को इस घर वालों के लिए कुछ औरतें गमी की ईद कहती हैं ईद के दिन मैयत के घर की औरतों से मिल जुल कर खूब रोती हैं यह सब गैर इस्लामी बातें हैं।_

*_ईद का दिन इस्लामी त्यौहार और खशी का दिन है। न कि रोने और पीटने का दिन। उस दिन कोई गम हो भी तो इस को ज़ाहिर न करे दिल में रहने दे चेहरे पर गम व रंज के आसार ज़ाहिर न होने दे चेहरे से खुशी और हंस मुख रहे।_*

_*हदीस पाक में है* हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मदीने तशरीफ लाये तो मदीने के लोग साल में दो मर्तबा खुशी मनाते थे। (महरगान और नीरोज़) हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा यह कौन से दिन हैं? लोगों ने कहाःज़माना-ए-जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी मनाते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला ने उनसे बेहतर दो (2) दिन अता फरमाये है ईदुल फित्र और ईदुज़्ज़हा।_

📗 *(अबूदाऊद बाब सलातुल ईदैन हदीस 1134 स,161)*

*_इस हदीस से खूब ज़ाहिर हो गया कि ईद का दिन खुशी मनाने का दिन है गम मनाने रोने पीटने का दिन नहीं। सदरुश्शरीआ मौलाना अमजद अली साहब आज़मी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं:_*
_ईद के दिन खुशी जाहिर करना मुस्तहब है।_

📗 *(बहारे शरीअत,4/781 मतबूआ मकतबतुलमदीना देहली)*

*_कुछ जगहों पर शबे बरात और मुहर्रम के चाँद को औरतें गमी का चाँद कहती हैं और नई दुल्हन के लिए ज़रूरी ख्याल किया जाता है कि वह यह चाँद सुसराल में न देखे बल्कि मैके में आकर देखे तो यह सब जाहिल औरतों की मन गढंत वहम परस्ती की बातें हैं उन से बचना ज़रूरी है।कोई भी औरत कोई सा चाँद कही भी देख सकती है हाँ जवान लड़कियों और औरतों को खुली छतों पर चाँद देखने के लिए चढना मना है ताकि बे पर्दा न हो।_*

📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,181 182*

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