*【POST 35】नसबन्दी कराने वाले की इमामत का हुक्म?*

*नसबन्दी कराना इस्लाम मे हराम है। लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते है। कि जिसने नसबन्दी करा ली अब वह जिन्दगी भर नमाज़ नही पढ़ा सकता। हालांकि ऐसा नही है। बल्कि इस्लाम मे जिस तरह और गुनाहों की तौबा है। उसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है।*

     यानी जिस की नसबन्दी हो चुकी है अगर वह सच्चे दिल से एलानिया तौबा करे और हराम कारियों से रूके तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
       
📕 *(फतावा फैजुर्रसूल जिल्द 1 सफहा 277)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 38*
          *खुलासा यही है। चाहे मस्जिद के इमाम हो या हमारे इस्लामी भाई इस्लाम मे नसबन्दी को हराम कहा तो हराम है।*

एक वक़्त हम मुसलमानो पर ऐसा आया जब सरकार ने नसबन्दी करने का ओर्डर दे दिया मर्दो की नसबन्दी का ऐलान शियासते हाजरा ने कर दिया जिसमे उस टाइम के हमारे बड़े बड़े उल्माऔ की कलम रूक गई लेकिन कुर्बान जाऔ हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द सैय्यदी सरकार मुस्तफा रजा खान अलहिर्रहमा* जिन कलम उढी तो अच्छे अच्छो की कलमे छूटती नजर आई और एलान कर दिया अए शियासते हाजरा नसबन्दी इस्लाम मे हराम हराम है। जिसको तु तो क्या त कयामत तक कोई नही बदल सकता यह बरेली है बरेली यहा सरकारे तो बदल दी जाती है। पर शरीअत का कानून नही बदलता आप हजरात ने सुना भी होगा और जो उस टाइम मे हयात थे उन्होने देखा भी होगा यह सान थी हमारे *मुफ्ती ए आजम हिन्द* की

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