*_﷽-الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ_*

*आसमानी किताबो का बयान पोस्ट(2)*

सवाल- कुरान में कितने कलमे हैं?
जवाब- 77,9,34।
(अलइतकान 1 पेज 67)

सवाल- कुरान में कितने हुरूफ हैं?
जवाब- 323671।
(अलइतकान 1 पेज 70)

सवाल- कुरान की सूरतो मे यह तर्तीब किसने दी?
जवाब- यह तर्तीब तोकीफी है यानी अल्लाह की जानिब से और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम से साबित है और यह खास लौहे महफूज से मुताबिक है। रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैह वसल्लम हर साल रमजान शरीफ में इसी तर्तीब के पर हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम से कुरान का दौर फरमाते थे।
(अलइतकान 1 पेज 62/जुमल 1 पेज 8)

सवाल- आयतों में यह तर्तीब किसने दी?
जवाब- यह तर्तीब भी तोकीफी है यानी अल्लाह की वही और हुजूर अनवर सल्ललाहो अलैह वसल्लम के मुताबिक आयतों की तर्तीब वार रखा गया,यही तर्तीब रसूलुल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम ने नकले मुतवातिर (सिलसिलेवार)के साथ साबित है नबी-ए-करीम को आयतो के बारे मे हुक्म देते थे कि फलाँ आयत फलाँ जगह लिखो,फलाँ जगह फलाँ आयत लिखो।
(अलइतकान 1 पेज 16/उम्दतुल कारी 3 पेज 100/ जुमल 1 पेज 8)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस में एराब  (ज़बर,जेर,पेश,जज्म)किसने लगाऐ?
जवाब- अबुल असवर दोयली ने लगाऐ, मगर उस वक्त जबर, पेश, जेर, वगैरा की शक्लें यह न थीं जो आज हैं उन्होंने नुकतो से ही जबर जेर पेश का काम लिया,फर्क यह था कि एराब वाले नुकतो के लिए उस रंग की रोशनाई न होती जिस रंग से कुरान लिखा होता बल्कि उसके लिए अलग रंग की रोशनाई इस्तेमाल करते थे । जबर के लिए हर्फ पर एक नुकता जेर के हर्फ के नीचे एक नुकता पेश के लिये हर्फ के अन्दर एक नुकता और तशदीद के लिए दो नुकते मुकर्रर किये । फिर खलील बिन अहमद फराहीदी ने तशदीद मद वक्त और जज्म वस्ल और हरकतो की निशानिया लगाई और जज़्ब जेर पेश की सूरते बनाई जो आज मौजूद है।
(रूहुल बयान 4 पेज 65/66)

सवाल- कुरान में नुकते किसने लगाऐ?
जवाब- हज्जाज बिन यूसुफ सकफी ने नसर बिन आसिम लेसी और यहया बिन यामर ने लगाऐ।
(रूहुल बयान 4 पेज 66 /शरह शिफा 2 पेज 335)

सवाल- नुकते किस सन में लगाऐ गये?
जवाब- 86 हिजरी में।
(आईनऐ तारीख पेज 22)

सवाल- हजरत उस्मान ए ग़नी रदियल्लाहु अनहु ने कुरान पाक के कितने नुस्खे तैयार कराऐ?
जवाब- मशहूर यह है कि पाँच नुस्खे तैयार कराऐ
लेकिन अबु दाऊद फरमाते हैं कि मैंने अबु हातिम सजिस्तानी से सुना के सात नुस्खे तैयार कराऐ थे जो अलग अलग इलाको मे भेजे गऐ । एक नुस्खा मक्का शरीफ एक मुल्के शाम एक यमन एक बहरैन एक कूफा एक बसरा और एक नुस्खा मदीना शरीफ ही में महफूज रखा गया था।
(अशिअअतुल लमआत 2 पेज 164/अलइतकान 1 पेज 81)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस के कितने नाम है?
जवाब- कुल नामों की तादाद अल्लाह और  रसूल जाने अल्बत्ता इमाम फख़्रूददीन राज़ी ने32नाम शुमार किये हैं।
(तफसीर कबीर 1 पेज 241)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस का सबसे पहले फारसी जुबान में तर्जुमा किसने किया है?
जवाब- शेख सअदी ने।
(आईनए तारीख पेज 40)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस का सबसे पहले उर्दू जुबान में तर्जुमा किसने किया है?
जवाब- शाह शफीउद्ददीन ने 1774ई• में किया।
(आईनए तारीख पेज 40)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस में कितनी आयतें हैं जिनसे मसाइल निकाले गऐ हैं?
जवाब- तमाम आयतो का इल्म तो नही अल्बत्ता अल्लामा मुल्ला जीवन ने अपनी किताब तफसीरे अहमदी में पाँच सौ आयतों का शुमार किया हैं।
(तफसीरे अहमदी)

सवाल- क्या कुरान शरीफ की तरह दूसरी आसमानी किताबे भी मुअजिजा(खुदाई चमत्कार)है?
जवाब- हाँ गैब की खबरो पर मुश्तमिल होने की वजह मुअजिजा हैं,अल्बत्ता इन किताबो की नज्मो तालीफ(तरतीब)कुरान की तरह मुअजिजा नही बर खिलाफ कुरान के नज्म व तालीफ के एतेबार से भी मुअजिजा है।
(एजाजुल कुरआन पेज 43/तकमीलुल ईमान पेज 10)

सवाल- क्या फरिश्ते भी कुरान ए मुकद्दस की तिलावत करते है?
जवाब- आम फरिश्तो को यह फजीलत नही दी गई,अल्बत्ता फरिशतो को कुरान ए मुकद्दस सुनने का बहुत शौक है जब कोई मुसलमान कुरान ए मुकद्दस पढता है तो फ़रिश्ते उसके मुँह पर मुँह रख कर कुरान ए मुकद्दस के पढने की लज्जा से फायदा उठाते हैं।
(फ़तावा हदीसीया पेज 45/अहकामे शरीअत 1 पेज 119)

सवाल- कुरान ए मुकद्दस में कितनी चीजो को अहसन(अच्छा)फरमाया?
जवाब- पाँच चीजो को,(1)अपने आपको(2)इन्सानी शक्ल व सूरत को(3)अज़ान को(4)इस्लाम(दीन)को(5)हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम के किस्से को।
(तफसीर नईमी पारा 12 पेज 368)

सवाल- हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने काफिरो और मुशिरको को कुरान ए मुकद्दस से कितनी बार चैलेंन्ज  किया?
जवाब- 4 बार चैलेंज किया(1)पूरे कुरान ए मुकद्दस से दिया जैसे यह आयत(कुल लइनिज्तमअतिल इन्सी वल जिन्नी अला इंय्यात बिस्लेहाजल कुरान)(2)दस सूरतो से दिया जैसे(कुल फअतू बिअशिर सुवारिम मिसलिही मुफत-र- यायिम)(3)एक सूरत से दिया जैसे(फअतू बिसूरतिम मिममिस्लिही)4 कुरान ए मुकद्दस जैसी एक बात लाने से दिया जैसे(फलयातु बिहदीसिम मिस्लिही)।
(सावी 1 पेज 161)
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