अर्श व कुर्शी का बयान

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सवाल- क्या अर्शे आज़म कोई जिस्म है?
जवाब- हाँ मख़लूकात में सबसे बड़ा जिस्म है जो हरकत व सुकून कुबूल करता है।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 118)

सवाल- अर्शे आज़म की लम्बाई चौड़ाई कितनी है?
जवाब- हदीस शरीफ में है कि सातों आसमान और ज़मीन कुर्सी के आगे इस तरह है जैसे एक चटयल मैदान में एक छल्ला पड़ा हो और कुर्शी अर्शे आज़म के किनारे ऐसी है जैसे एक चटयल मैदान में एक छल्ला पड़ा हो।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 64)

सवाल- क्या अर्शे भी अल्लाह तआला से खौफ़ खाता है?
जवाब- हाँ तमाम मख़लूकात से ज्यादा खौफ़ खाता है यहाँ तक कि जब अल्लाह तआला ने उसको पैदा किया तो उसकी अज़मत व जलाल से कांपता था(अल्लाहुअकबर) फिर जब कुदरत ने उसपर "लाईलाह इल्लल्लाह" लिख दिया तो इस नाम शरीफ़ की हैबत से और ज्यादा लरज़ने लगा(अल्लाहुअकबर) फिर जब उसपर "मुहम्मदु र्रसूललुल्लाह" लिखा तो इस नाम पाक की बरकत से उसको सुकून हासिल हुआ और लरज़ना बन्द हो गया।
(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 2 सफ़्हा 34)

सवाल- अर्शे आज़म की क्या शान है(आया रखा हुआ है या उससे कोई उठाए हुऐ हैं?
जवाब- इस वक़्त तो चार फ़रिश्ते उसको काँछों पर उठाऐ हुऐ हैं और क़यामत के दिन आठ फ़रिश्ते उठाऐंगे।
(ज़रक़ानी जिल्द 6 सफ़्हा 86/अलमलफूज जिल्द 4 सफ़्हा 64)
दूसरी रिवायत में है कि इस वक़्त आठ फ़रिश्ते उठाऐं हुऐ है।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्ते कैसे हैं?
जवाब- पहाड़ी बकरों की शक़्ल में है उनके पाँव के नीचे से घुटनों तक पाँच सौ बरस की राह है एक रिवायत में है कि कान की एक लौ और काँधों के बीच सात सौ बरस की दूरी है बाज रिवायत में है कि कोई इन्सान की शक़्ल कोई गिध्द की शक़्ल कोई बैल की शक़्ल और कोई शेर की शक़्ल में है।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- कुर्शी क्या है?
जवाब- कुर्शी से मुराद या तो इल्म व कुदरत है या खुद नफ्स कुर्शी जो सातवें आसमान के उपर है जिसे चार फ़रिश्ते उठाए हुऐ हैं।
(सावी जिल्द 1 सफ़्हा 107)

सवाल- कुर्शी के उपर क्या है?
जवाब- अर्शे आज़म।
(ख़जाइन सफ़्हा 63)

सवाल- सातवें आसमान से कुर्शी तक कितना फ़ासला है?
जवाब- पाँच सौ बरस की राह।
(ख़ाज़िन जिल्द 7 सफ़्हा 120)

सवाल- अर्शे आज़म व कुर्शी के दरमियान किस कदर फासला है?
जवाब- अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्तों और कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्तों के दरमियान में सत्तर हिजाबात (परदे) तारीकी के और सत्तर हिजाबात नूर के हैं और हर हिजाब की मोटाई पाँच सौ बरस की राह है और अगर इस कदर फासला न होता तो कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्ते अर्शे आज़म के उठाने वाले फ़रिश्तों के नूर से जल जाते।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228)

सवाल- कुर्शी के उठाने वाले फ़रिश्ते कैसे हैं?
जवाब- उन फ़रिश्तों में से हर एक के चार मूँह हैं और उनके कदम उस पत्थर पर हैं जो सातवीं जमीन के नीचे है एक फ़रिश्ता हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शक़्ल में है वह एक साल से दूसरे साल तक आदम की औलाद के लिये रिज़्क और बारिश का सवाल करता है और एक फ़रिश्ता गिध्द की शक़्ल में है जो परिन्दों के लिये एक साल से दूसरे साल तक रिज़्क का सवाल करता है और एक फ़रिश्ता बैल की शक़्ल में है जो चौपायों के लिये एक साल से दूसरे साल तक तक रिज़्क का सवाल करता है और फ़रिश्ता शेर की तरह है वह वसशियों के लिये एक साल से दूसरे साल तक रिज़्क का सवाल करता है।
(ख़ाज़िन जिल्द 1 सफ़्हा 228)

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