*कुफ्र की किस्में*

कुफ्र की किस्में:- *_इसकी 2 किस्में हैं असली व मुर्तद_*

1-असली:- *_वो जो शुरू से काफिर और कल्मए इस्लाम का मुनकिर है,इसकी भी 2 किस्में हैं मुजाहिर व मुनाफिक़,मुजाहिर की भी 4 किस्में हैं_*

दहरिया:- *_ये खुदा का ही मुनकिर है_*

मुशरिक:- *_अल्लाह के सिवा बुतों को अपना मअबूद समझना और किसी और की इबादत करना जैसे हिन्दू व आर्य वग़ैरह_*

मजूसी:- *_आग की पूजा करने वाले_*

किताबी:- *_यहूद व नसारा_*

*_दहरिया व मुश्रिक व मजूसी का ज़बीहा हराम और उनकी औरतों से निकाह बातिल जबकि किताबी से निकाह हो जायेगा मगर मना है_*

2-मुर्तद:- *_वो जो मुसलमान होकर कुफ्र करे इसकी भी 2 किस्में हैं,मुजाहिर व मुनाफिक़_*

मुर्तद मुजाहिर:- *_वो जो मुसलमान था मगर अलल ऐलान इस्लाम से फिर कर काफिर हो गया यानि दहरिया या मुश्रिक या मजूसी या किताबी हो गया_*

मुर्तद मुनाफिक़:- *_वो जो अब भी कल्मा पढ़ता है और अपने आपको मुसलमान कहता है मगर खुदा व रसूल की शान में गुस्ताखी करता है और ज़रूरियाते दीन का इन्कार करता है जैसे कि वहाबी,देवबंदी,क़ादियानी,खारिजी,राफजी यानि शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी यानि मौदूदवी और भी बदमज़हब फिरके हैं,हुक्मे दुनिया में सबसे बदतर मुर्तद हैं इनसे जुज़िया नहीं लिया जा सकता इनका निकाह दुनिया में किसी से नहीं हो सकता ना मुसलमान से ना काफिर से ना मुर्तद से ना इनके हम मज़हब गर्ज़ कि किसी हैवान से भी नहीं हो सकता जिससे भी होगा ज़िना खालिस होगा,ये काफिर की सबसे बदतर किस्म है इसकी सोहबत हज़ार काफिरों की सोहबत से भी ज़्यादा खतरनाक है क्योंकि ये मुसलमान बनकर कुफ्र सिखाता है_*

*📚 अहकामे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 111*

*वैसे तो क़ुर्आन में मुनाफिक़ों के बारे में बेशुमार आयतें नाज़िल हुई हैं मगर सबका ज़िक्र ना करके सिर्फ उन आयतों को पेश करता हूं जिनमें उनकी इबादत उनके एहकाम और उनका हश्र बयान हुआ हो,मुलाहज़ा फरमायें*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जो खर्च करते हैं उनका क़ुबूल होना बन्द ना हुआ मगर इसलिये कि वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 54*

*आज जो लोग बद अक़ीदों की नमाज़ और उनके सदक़ात और उनकी मिसाल देकर लोगों को समझाया करते हैं कि देखो ये लोग कितने मुत्तक़ी हैं तो वो इस आयत को बग़ौर पढ़ें,इसमें मौला तआला ने साफ फरमा दिया कि कुछ लोग नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर दिल से नहीं बल्कि दिखावे के तौर पर पढ़ते हैं और जो खर्च करते हैं यानि ज़कातो फित्रा वगैरह वो भी मजबूरी और नागवारी से खर्च करते हैं और उनकी कोई इबादत हरगिज़ क़ुबूल नहीं*

कंज़ुल ईमान:- *_और वो जिन्होंने मस्जिद बनाई नुक्सान पहुंचाने को और कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफरक़ा डालने को और उसके इंतेज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुखालिफ है,और वो ज़रूर कसमें खायेंगे हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है कि वो बेशक झूठे हैं.उस मस्जिद में तुम कभी खड़े ना होना_*

*📚 पारा 11, सूरह तौबा, आयत 107-108*

*आँख खोलकर इस आयत को पढ़िये और बताइये कि क्या हर मस्जिद खुदा का घर है अगर होती तो मौला तआला खुद उस मस्जिद में अपने महबूब को जाने से क्यों मना करता,ये मस्जिदे दर्रार थी जिसको खुदा का हुक्म आने पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को भेजकर आग लगवा दी थी मगर उन मुनाफिक़ों की औलादें आज तक मुसलमानों की मस्जिदों और उनके नमाज़ियों में तफरक़ा डालने के लिए हर जगह अपनी मस्जिदें बनाते नज़र आते हैं और उनकी मस्जिदें हरगिज़ खुदा का घर नहीं और ना मुसलमान को उसमे जाने की इजाज़त है,क्यों इजाज़त नहीं है खुद ही पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_और कहते हैं हम ईमान लाये अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उन में के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुसलमान नहीं_*

*📚 पारा 18, सूरह नूर, आयत 47*

*यानि जो खुदा व रसूल से दुश्मनी करे और जो ज़रूरियाते दीन का मुनकिर है उसमे और काफिर में क्या फर्क रहा वो भी उन्हीं की तरह काफिर हुआ और काफिरों के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ी जाती इसीलिए ना उनकी मस्जिदों में मुसलमान को जाने की इजाज़त है और ना उनके पीछे नमाज़ पढ़ने की*

कंज़ुल ईमान:- *_और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ ना पढ़ना और ना उनकी क़ब्र पर खड़े होना,बेशक वो अल्लाह और रसूल से मुनकिर हुए और फिस्क़ ही में मर गये_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 84*

*अल्लाह अल्लाह,मौला तो ये फरमा रहा है कि उनकी मस्जिदें मस्जिदें नहीं,उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,उनके रोज़ रोज़े नहीं,उनकी इबादतें इबादतें नहीं,वो हरगिज़ मुसलमान नहीं उनकी मय्यत पर जाना नहीं और आज का जाहिल मुसलमान है कि कहता है सब अल्लाह के बन्दे हैं हर मस्जिद खुदा का घर है वो भी मुसलमान हैं मआज़ अल्लाह,अगर बद मज़हब मुसलमान होता तो क्या मौला ये फरमाता,पढ़िये*

कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह मुनाफिक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकट्ठा करेगा..........बेशक मुनाफिक़ दोज़ख के सबसे नीचे तबके में हैं_*

*📚 पारा 5, सूरह निसा, आयत 140/145*

*अब अगर अपने ईमान की खैर चाहते हैं तो वहाबियों,देवबंदियों,क़ादियानियों,खारजियों,राफजियों,अहले हदीसों,मौदूदवियों और भी दीगर बद मज़हब फिरकों के मानने वालो को मुसलमान समझना छोड़ दीजिये और उनसे दूरी बना लीजिए वरना मौला क़यामत के दिन उन्हीं के साथ उठाकर उन्ही सा हश्र करके उन्हीं के साथ हमेशा के लिए जहन्नम में डाल देगा,ये मैं नहीं कह रहा बल्कि मौला तआला खुद फरमा रहा है,पढ़ लीजिये*

कंज़ुल ईमान:- *_ऐ ईमान वालों अपने बाप और अपने भाईयों को दोस्त ना बनाओ अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और फिर जो तुममें से उनसे दोस्ती रखे तो वही लोग सितमगार हैं..........वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*

*📚 पारा 10, सूरह तौबा, आयत 23/61*

*जो मेरे आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करता है वो तो जहन्नमी है ही मगर वो भी जहन्नमी है जो उनसे दोस्ती या रिश्तेदारी रखेगा ग़ौर कीजिये कि जब सगा बाप और सगा भाई मुर्तद हो जाये तो उनसे रिश्ता तोड़ देने का हुक्म है तो जो लोग पड़ोसियों और रिश्तेदारों और दीगर अज़ीज़ो का हवाला देते हैं क्या उन बद मज़हबो से रिश्ता रखना जायज़ होगा हरगिज़ नहीं,लिहाज़ा जिस तरह बद मज़हबो से परहेज़ किया जाये उसी तरह उन दोगले सुन्नियों से भी परहेज़ किया जाये जो बद मज़हब को बद मज़हब नहीं जानते,मौला तआला सुन्नियों को ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखने की तौफीक़ अता फरमाये और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम व दायम रहने की तौफीक़ अता फरमाये,आमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम*

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