*सलातो सलाम*

कंज़ुल ईमान:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते दुरूद भेजते हैं उस ग़ैब बताने वाले नबी पर,ऐ ईमान वालों उन पर दुरूद और खूब सलाम भेजो_*

तर्जुमा थानवी:- *_बेशक अल्लाह और उसके फरिश्ते रहमत भेजते हैं इन पैगम्बर पर,ऐ ईमान वालों तुम भी आप पर रहमत भेजा करो और खूब सलाम भेजा करो_*

*📚 पारा 22, सूरह अहज़ाब, आयत 56*

*और हज़रत यहया अलैहिस्सलाम की विलादत पर रब तआला फरमाता है*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है उस पर जिस दिन पैदा हुआ और जिस दिन मरेगा और जिस दिन ज़िंदा उठाया जायेगा_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 15*

*और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने तो खुद अपने ऊपर सलाम पढ़ा*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलामती है मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मरूं और जिस दिन ज़िंदा उठाया जाऊं_*

*📚 पारा 16, सूरह मरियम, आयत 33*

कंज़ुल ईमान:- *_नूह पर सलाम हो जहां वालों में_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 79*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इब्राहीम पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 109*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो मूसा और हारून पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 120*

कंज़ुल ईमान:- *_सलाम हो इल्यास पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 130*

कंज़ुल ईमान:- *_और सलाम है पैगम्बरों पर_*

*📚 पारा 23, सूरह साफ़्फ़ात, आयत 181*

*खुद रब्बे ज़ुल्जलाल ने तो सारे अम्बिया पर ही सलाम पढ़ डाला मगर पता नहीं कि अन्धे और कोढियों की कौन सी क़ुर्आन है जिसमें सलाम पढ़ने को हराम और शिर्क लिखा गया है,बात तो यहीं पर खत्म हो जानी चाहिए थी मगर अब जब शुरू किया है तो पूरी कर ही दूं*

हदीस:- *_हज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि मैं नबीये करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम के हमराह मक्का में था,फिर सरकारे अक़दस और मैं मक्का शरीफ के गिर्द अंवाह में गये तो जिस पहाड़ और दरख़्त का भी सामना होता तो वो बा आवाज़ बुलन्द अर्ज़ करता ,अस्सलामु अलैका या रसूल अल्लाह!, सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम_*

*📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, सफ़ह 203*

*और अब मुनकिर ये कहेगा कि सलाम पढ़ना तो फिर भी ठीक है मगर क़यामे ताज़ीमी हराम है,तो ग़ैरुल्लाह की ताज़ीम यानि क़याम पर भी दलील मुलाहज़ा करें*

हदीस:- *_जब हज़रत सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मस्जिदे नबवी शरीफ में दाखिल हुए तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अनसार को हुक्म दिया कि,क़ूमू इला सय्येदिकुम!, यानि अपने सरदार के लिए खड़े हो जाओ_*

*📚 मिश्कात, जिल्द 1, बाबुल जिहाद*

हदीस:- *_खातूने जन्नत हज़रत फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के आने पर नबी करीम सल्ल्ललाहु तआला अलैही वसल्लम फौरन खड़े हो जाते और आपकी पेशानी चूमकर अपनी मसनद पर बिठाते_*

*📚 मिश्कात, किताबुल अदब, बाबुल मुसाफा*

*अगर क़यामे ताज़ीमी हराम होता तो क्यों नबी अपने सहाबियों को खड़ा होने का हुक्म देते और क्यों खुद अपनी बेटी के आने पर उसकी ताज़ीम करते,ज़ाहिर सी बात है कि या तो वहाबियों ने क़ुर्आनो हदीस पढ़ी ही नहीं और अगर पढ़ी है तो उसका मतलब समझने से कासिर रह गये,और अगर किसी की ताज़ीम के लिये खड़ा होना अगर शिर्क होता तो दुनिया के तमाम इन्सान मुश्रिक हो जाते मदर्से के तल्बा मुदर्रिस के आने पर खड़े हो जाते हैं तो स्कूल के बच्चे टीचर के आने पर और दुनियादारों की तो बात ही क्या करना मजिस्ट्रेट आ जाये तो खड़े हो जाओ कमिश्नर आ जाये तो खड़े हो जाओ M.L.A आ जाये तो खड़े हो जाओ C.M आ जाये तो खड़े हो जाओ P.M आ जाये तो खड़े हो जाओ और खुद वहाबी अपने इमामो पेश्वा के लिये खड़े होते है मगर नबी की ताज़ीम को जैसे ही सुन्नी ने खड़े होकर सलाम पढ़ा कुछ दोगलों के मज़हब में हराम और शिर्क हो गया,इसी लिए मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

*शिर्क जिसमे होवे ताज़ीमे हबीब*
*उस बुरे मज़हब पे लअनत कीजिये*

*रब जिस पर दुरूद भेजे,शजरो हजर जिस पर सलाम पढ़ें,जानवर जिनको सज्दा करें,हम अपने उसी नबी की बारगाह में ''मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम'' पढ़ लें तो इतनी क़यामत कि अल्लाह अल्लाह,क्या क़ुर्आन में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने सलाम पढ़ने पर कोई क़ैद लगाई है कि ऐसे पढ़ो और ऐसे ना पढ़ो या तन्हा पढ़ो मगर भीड़ में ना पढ़ो तो जब उसने कह दिया पढ़ो तो जो जिस ज़बान में और जैसे भी पढ़ेगा उसी का हुक्म अदा करेगा,अब ज़रा चलते चलते इन मुनाफिकों के इमाम का भी एक क़ौल मुलाहज़ा कर लें रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल के जवाब में लिखा*

वहाबी:- *_ताज़ीमे दीनदार को खड़ा होना दुरुस्त है_*

*📚 फ़तावा रशीदिया, जिल्द 1, सफ़ह 54*

*और अशरफ अली थानवी के पीरो मुर्शिद हाजी इम्दाद उल्लाह मुहाजिर मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि लिखते हैं*

फुक़्हा:- *_मशरब फक़ीर का ये है कि महफिले मिलाद में शरीक होता हूं बल्कि ज़रियये बरकात समझ कर हर साल मुनक़्क़िद करता हूं और क़याम में लुत्फो लज़्ज़त पाता हूं_*

*📚 फैसला हफ्त मसला, सफ़ह 111*

*पीर को तो सलाम पढ़ने में लुत्फ मिल रहा है और मुरीद हराम और शिर्क का फतवा दे रहा है,अल्लाह ही जाने वहाबियों के यहां दीन किस चीज़ का नाम है*

No comments:

Post a Comment

Our Social Sites