"बकरा ईद" ?
'बकरी ईद'?
👉🏿 तो में कहुँगा क़ुरबानी तो अक्सर बकरे की दी जाती है तो इसे "बकरा ईद" क्यों नही कहते ?
अच्छा चलो ,
कुरबानी तो ऊंट, भैसा, दुंबा, भेड़ो की भी दी जाती है
तो
आप लोग इस ईद को "ऊंट ईद, भैसा ईद, दुंबा ईद, भैड़ ईद" क्यों नही कहते ?
या फिर
कुल मिलाकर "जानवर ईद" क्यों नही कहते ?
दरअसल
हमारी अक्लों पर परदा पड़ा हुआ है कि *हम अपने तक़वे से नज़र अंदाज़ी करके इस ईद को जानवरों से निसबत दे रहे हैं*,
जब के
इस ईद का जानवर, गोश्त, खून और जान से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं|
कुरआन शरीफ पुकार पुकार कर कह रहा है के....
*"अल्लाह(सु.त.) को हरगिज़ ना उनके गोश्त पहुँचते है ना उनके खून, हाँ तुम्हारी परहेज़गारी उस तक ज़रूर दस्तयाब होती हे ।*
📗-सूरह हज, पारा १७ , आयत ३७
अब जिन चीज़ो की अल्लाह(सु.त.) की बारगाह में अहमियत ही नहीं भला फिर हम क्यों उन चीज़ो को ईद से जोड़ रहे है|
अल्लाह(सु.त.) की नज़र फ़क़त *हमारे दिलों पर, नियत पर, तक़वे पर, परहेज़गारी और इस्तिकामत पर होती है,जो जज्बा उसकी राह मे वह भी सिर्फ उसकी रज़ा के लिए क़ुरबानी करने का हो बस|*
हिंदू तहज़ीब वालो की तरफ से
इस ईद को 'बकरा ईद' कहा है,
👉🏿 कोई बता दे मुझे कि *'इंडिया' के अलावा पूरी दुनिया में इस ईद को कोई 'बकरा ईद' कहता हो|*
यह कमाल सिर्फ
*'हुनूद' की तहज़ीब का है,जिस के रंग मे हम रंगते चले गए|*
इस्लाम मे इस ईद को
*"ईद-उल-अज्हा"* कहा गया है|
'ईद' के मायने है
*मुसलमानों के जश़न का दिन*
और *'अज्हा' के मायने है चाश़्त का वक्त|*
लेकिन
आवाम मे 'ईद-उल-अज्हा' के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर है|
फिर भी लौग 'क़ुरबानी की ईद' ना कहते हुए सीधे 'बकरा ईद' कह देते है,
जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके *खुद मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते हें तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है तुम्हारी तहज़ीब को तो तुमने ही बिगाड़ा है| बहुत से इस्लामी केलेंडरों में भी बेधड़क आज भी *'बकरा ईद'* लिखा जा रहा है|
जब इस्लाम की तारीख़ मे इस ईद को *"ईद-उल-अज्हा"* कहा गया है फिर इसे 'बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?
किसी भी बुज़ुर्ग ने इस ईद को 'बकरा ईद' नही कहा है|
बराए करम
*ये अहद करें के आज से हम इस ईद को सिर्फ और सिर्फ "ईद-उल-अज्हा" ही कहेंगे .*
'बकरी ईद'?
👉🏿 तो में कहुँगा क़ुरबानी तो अक्सर बकरे की दी जाती है तो इसे "बकरा ईद" क्यों नही कहते ?
अच्छा चलो ,
कुरबानी तो ऊंट, भैसा, दुंबा, भेड़ो की भी दी जाती है
तो
आप लोग इस ईद को "ऊंट ईद, भैसा ईद, दुंबा ईद, भैड़ ईद" क्यों नही कहते ?
या फिर
कुल मिलाकर "जानवर ईद" क्यों नही कहते ?
दरअसल
हमारी अक्लों पर परदा पड़ा हुआ है कि *हम अपने तक़वे से नज़र अंदाज़ी करके इस ईद को जानवरों से निसबत दे रहे हैं*,
जब के
इस ईद का जानवर, गोश्त, खून और जान से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं|
कुरआन शरीफ पुकार पुकार कर कह रहा है के....
*"अल्लाह(सु.त.) को हरगिज़ ना उनके गोश्त पहुँचते है ना उनके खून, हाँ तुम्हारी परहेज़गारी उस तक ज़रूर दस्तयाब होती हे ।*
📗-सूरह हज, पारा १७ , आयत ३७
अब जिन चीज़ो की अल्लाह(सु.त.) की बारगाह में अहमियत ही नहीं भला फिर हम क्यों उन चीज़ो को ईद से जोड़ रहे है|
अल्लाह(सु.त.) की नज़र फ़क़त *हमारे दिलों पर, नियत पर, तक़वे पर, परहेज़गारी और इस्तिकामत पर होती है,जो जज्बा उसकी राह मे वह भी सिर्फ उसकी रज़ा के लिए क़ुरबानी करने का हो बस|*
हिंदू तहज़ीब वालो की तरफ से
इस ईद को 'बकरा ईद' कहा है,
👉🏿 कोई बता दे मुझे कि *'इंडिया' के अलावा पूरी दुनिया में इस ईद को कोई 'बकरा ईद' कहता हो|*
यह कमाल सिर्फ
*'हुनूद' की तहज़ीब का है,जिस के रंग मे हम रंगते चले गए|*
इस्लाम मे इस ईद को
*"ईद-उल-अज्हा"* कहा गया है|
'ईद' के मायने है
*मुसलमानों के जश़न का दिन*
और *'अज्हा' के मायने है चाश़्त का वक्त|*
लेकिन
आवाम मे 'ईद-उल-अज्हा' के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर है|
फिर भी लौग 'क़ुरबानी की ईद' ना कहते हुए सीधे 'बकरा ईद' कह देते है,
जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके *खुद मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते हें तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है तुम्हारी तहज़ीब को तो तुमने ही बिगाड़ा है| बहुत से इस्लामी केलेंडरों में भी बेधड़क आज भी *'बकरा ईद'* लिखा जा रहा है|
जब इस्लाम की तारीख़ मे इस ईद को *"ईद-उल-अज्हा"* कहा गया है फिर इसे 'बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?
किसी भी बुज़ुर्ग ने इस ईद को 'बकरा ईद' नही कहा है|
बराए करम
*ये अहद करें के आज से हम इस ईद को सिर्फ और सिर्फ "ईद-उल-अज्हा" ही कहेंगे .*
No comments:
Post a Comment