*【पोस्ट न.= 01】*

*_﷽-الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ_*
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      💫💫  _*【इस्लाम में हर नया काम गुमराही और गुनाह नहीं】*_💫💫
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*_मुसलमानों में कुछ ऐसी बातें राइज हो गई हैं जो ऐसी शक्ल में रसूल उल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और सहाबा किराम के ज़माने में न थीं। अगर्चे बाद में इनका रिवाज हुआ लेकिन इन में कोई दीनी व इस्लामी मसलिहत है और खिलाफ शरअ कोई बात भी इन में नहीं पाई जाती और वह कुरआन व हदीस के किसी हुक्म के खिलाफ़ नहीं है तो इनको करने में कोई हर्ज नहीं है इनको बिदअत व गुमराही कहना सरासर नादानी है। जैसे बुजुर्गों के नाम पर सदका व ख़ैरात करना अहबाब व आम मुस्लिमीन को खिलाना पिलाना जिसे नियाज़ दिलाना कहते हैं फातिहा दिलाना कुरआन ख्वानी करना उर्स करना महफिल मीलाद शरीफ का इनइकाद अज़ान के बाद नमाज़ की याद दहानी के लिए मस्जिद में सलात पुकारना। कब्रों पर अज़ान देना बारहवी शरीफ के दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादते शरीफा की खुशी मनाना वगैराह यह सब काम अच्छे हैं और इनको करने में कोई हर्ज नहीं है जबकि इनमें कोई ऐसी ज़्यादती न हो जो खिलाफ़ शरअ हो और शरियते इस्लामिया के दायरे में ही किये जाये कुछ लोग कहते है कि यह सब बाते इसलिए गुनाह हैं कि हुज़ूर के ज़माने में इनका कोई वुजूद न था हांलाकी इनकी अस्ल हकीकत उस ज़माने में भी थी यानी किसी न किसी शक्ल में यह हुज़ूर के ज़माने में भी पाये जाते थे, और बिदअत यानी नया काम गुमराही तब होता है जबकि वह सरकार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने में किसी भी शक्ल में न हुआ और इसको करने में किसी शरई हुक्म की मुखालिफत होती हो।_*

 *_अगर इस्लाम में हर वह काम विदअत गुमराही है जो हुज़ूर के ज़माने में न था तो मदारिस कायम करना चन्दे करना इल्म नहव व सर्फे बलाग़त व फसाहत पढ़ना मदारिस में सालाना खत्म बुख़ारी के जल्से दस्तार वन्दी मस्जिदों पर मीनार बनाना इल्म उसूल व फिका पढ़ना ऐराब यानी जबर जेर और पेश लगे हुऐ कुरआन पढ़ना पढ़ाना और छापना। चालीस दिन मुकर्रर करके तबलीग के लिये निकलना यह सब काम भी हुज़ूर के ज़माने में न थे लिहाज़ा यह भी गुमराही हो जायेगी खुलासा यह कि अहादीस से यह बात साबित है हर नया काम गुमराही नहीं अगर इसकी अस्ल हुज़ूर के ज़माने में हो और इसको करने में कोई दीनी भलाई या इस्लाम और मुसलमानों का नफा हो।_*
 _अब इस सिलसिले में अहादीस मुलाहेज़ा फ़रमाइये_

हदीद:-  *_हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि जिसने इस्लाम में कोई अच्छा तरीका निकाला तो इसको उसका अज्र व सवाब मिलेगा और जितने लोग उस पर अमल करेंगे उन सबका सवाब भी उस को मिलेगा और उनके सवाब में कोई कमी नहीं की जायेगी और जिस ने इस्लाम में कोई बुरा तरीका निकाला तो उस पर उसका गुनाह होगा और जितने उस पर चलेंगे उन सब का गुनाह भी उस पर होगा और उन गुनाहों में भी कोई कमी नहीं की जोयगी।_*

 *📚 मुस्लिम, जिल्द 1, किताबुज्ज़कात, सफ़्हा 327*
 *📚 मिश्कात किताबुल इल्म, सफ़्हा 33*

 *_इस हदीस की शरह में इमाम नबवी(अलमूतवफा.676 हिज़री) फ़रमाते हैं इस हदीस से हुज़ूर के फ़रमान और हर नया काम बिदअत है और हर बिदअत गुमराही की तखसीस हो जाती है। और बेशक इस हदीस में हुज़ूर ने नये कामों को गुमराही फ़रमाया है जो बातिल हों और उन बिदअतों को जो मज़मूम और बुरी हों और बिदअत की पाँच अकसाम है।_* (1)वाजिब, (2)मन्दूब, (3)हराम, (4)मकरूह, (5)मुबाह,

 *📚हाशियाये मुस्लिम सफ़्हा 327*

 *_इससे खूब ज़ाहिर हुआ कि इमाम नबवी का मसलक यही था कि बिदअत की पाँच किस्में हैं लिहाज़ा हर बिदअत और नये काम को गुमराही नहीं कहना चाहिए।_*

 _➡ पोस्ट ज़ारी रहेगी........._
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