*_﷽-الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ_*
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💫💫 _*【इस्लाम में हर नया काम गुमराही और गुनाह नहीं】*_💫💫
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हदीस:- *_हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि सल्लललाहो वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिसने सवाब व यक़ीन की नियत के साथ।रमज़ान में तरावीह की नमाज़।पढ़ी उसके गुज़िश्ता गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। इब्ने शहाब कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दुनिया से तशरीफ ले गये और बात इतने ही तक रही और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की खिलाफत में और हज़रत उमर के शुरू दौरे खिलाफत में भी यही चलता रहा (याना बा कायदा बा जमाअत तरावीह की नमाज़ नहीं पढ़ी जाती थी) अब्दुर्रहमान कहते हैं कि मैं हज़रत उमर के साथ एक दिन रमज़ान की रात में मस्जिद में गया तो लोगो को अलग अलग नमाज़ पढ़ते देखा कोई अकेला पढ़ रहा है किसी के साथ चन्द लोग नमाज़ पढ़ रहे हैं_*
*_हज़रत उमर ने फ़रमाया मेरी राय में अगर मैं इन लोगों को एक इमाम के साथ जमा कर देता तो बिहतर होता। फिर इस ख्याल को अम्ली जामा पहनाया और सबको हज़रत उबई इब्ने कअब की इमामत पर जमा फरमा दिया हज़रत अब्दुर्रहमान कहते हैं फिर मैं अगली रात हज़रत उमर के साथ मस्जिद में गया तो देखा सब लोग नमाज़े तरावीह एक ही इमाम के साथ बा जमाअत अदा कर रहे हैं हज़रत उमर ने फ़रमाया यह बिदअत (नया काम ) बहुत अच्छा है।_*
*📚 बुखारी जिल्द 1, बाब फज़ले मन क़ामा रमज़ान, सफ़्हा 269*
*📚 मिश्कात, सफ़्हा 115*
*_इस हदीस शरीफ से खूब वाज़ेह हो गया कि हज़रत उमर रदियल्लाहु ताअला अन्हु के नज़दीक हर नया काम बिदअते गुमराही नहीं और यह कि बिदअत और नये काम कुछ अच्छे भी होते हैं। लेकिन आज कल कुछ लोगों को यह हदीसें नज़र कहां आती हैं उन्हें तो जिस काम से इस्लाम को फ़ायदा भी होता हो तब भी बिदअत व गुमराही दिखती है कि यह इस्लाम में ऐसा काम कब हुआ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने हुआ हो तो बताओ या साहबा के दौर में हुआ तो बताओ वगैराह वगैराह उन लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस नये काम से दीन को फ़ायदा मिल रहा है बस कहने से मतलब है बहरहाल अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त महफूज़ फ़रमाए ऐसे लोगों से और मौला ताअला हम सबके इमान व अक़ीदे की हिफाज़त फ़रमाए और सच्चे पक्के मसलके आ'ला हज़रत पर ताउम्र चलने की तोफ़ीक अता फ़रमाए।_* *आमीन*
_➡ पोस्ट ज़ारी रहेगी........_
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हदीस:- *_हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि सल्लललाहो वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिसने सवाब व यक़ीन की नियत के साथ।रमज़ान में तरावीह की नमाज़।पढ़ी उसके गुज़िश्ता गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। इब्ने शहाब कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दुनिया से तशरीफ ले गये और बात इतने ही तक रही और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की खिलाफत में और हज़रत उमर के शुरू दौरे खिलाफत में भी यही चलता रहा (याना बा कायदा बा जमाअत तरावीह की नमाज़ नहीं पढ़ी जाती थी) अब्दुर्रहमान कहते हैं कि मैं हज़रत उमर के साथ एक दिन रमज़ान की रात में मस्जिद में गया तो लोगो को अलग अलग नमाज़ पढ़ते देखा कोई अकेला पढ़ रहा है किसी के साथ चन्द लोग नमाज़ पढ़ रहे हैं_*
*_हज़रत उमर ने फ़रमाया मेरी राय में अगर मैं इन लोगों को एक इमाम के साथ जमा कर देता तो बिहतर होता। फिर इस ख्याल को अम्ली जामा पहनाया और सबको हज़रत उबई इब्ने कअब की इमामत पर जमा फरमा दिया हज़रत अब्दुर्रहमान कहते हैं फिर मैं अगली रात हज़रत उमर के साथ मस्जिद में गया तो देखा सब लोग नमाज़े तरावीह एक ही इमाम के साथ बा जमाअत अदा कर रहे हैं हज़रत उमर ने फ़रमाया यह बिदअत (नया काम ) बहुत अच्छा है।_*
*📚 बुखारी जिल्द 1, बाब फज़ले मन क़ामा रमज़ान, सफ़्हा 269*
*📚 मिश्कात, सफ़्हा 115*
*_इस हदीस शरीफ से खूब वाज़ेह हो गया कि हज़रत उमर रदियल्लाहु ताअला अन्हु के नज़दीक हर नया काम बिदअते गुमराही नहीं और यह कि बिदअत और नये काम कुछ अच्छे भी होते हैं। लेकिन आज कल कुछ लोगों को यह हदीसें नज़र कहां आती हैं उन्हें तो जिस काम से इस्लाम को फ़ायदा भी होता हो तब भी बिदअत व गुमराही दिखती है कि यह इस्लाम में ऐसा काम कब हुआ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने हुआ हो तो बताओ या साहबा के दौर में हुआ तो बताओ वगैराह वगैराह उन लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस नये काम से दीन को फ़ायदा मिल रहा है बस कहने से मतलब है बहरहाल अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त महफूज़ फ़रमाए ऐसे लोगों से और मौला ताअला हम सबके इमान व अक़ीदे की हिफाज़त फ़रमाए और सच्चे पक्के मसलके आ'ला हज़रत पर ताउम्र चलने की तोफ़ीक अता फ़रमाए।_* *आमीन*
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