*_﷽-الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ_*
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💫💫 _*【इस्लाम में हर नया काम गुमराही और गुनाह नहीं】*_💫💫
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हदीस:- *_हज़रत बिलाल हारिस से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिसने किसी सुन्नत को राइज किया जबकि मेरे बाद लोग उस को बिल्कुल छोड़ चुके थे तो उसको इस पर अमल करने वाले सारे लोगों का सवाब मिलेगा। और इन के सवाब में कोई कमी न की जायेगी और जिस ने ऐसी बिदअत नये काम को ईजाद किया जो गुमराही है तो इस पर अमल करने वाले का गुनाह होगा और इनके गुनाह में भी कमी नहीं आयेगी।_*
*📚 तिर्मिज़ी, जिल्द 2, बाबुल अख्ज़ बिस्सुन्नत, सफ़्हा 92*
*📚 मिश्कात, किताबुल इतिसाम, सफ़्हा 30*
*_इस हदीस शरीफ में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला वसल्लम ने बिदअत के आगे ज़लालत की कैद लगाकर वाज़ह फ़रमाया कि हर बिदअत और नया काम गुनाह नहीं बल्कि वही जो ज़लालत यानी गुमराही हो। गोया कि बिदअत की तकसीम और उसका अच्छा और बुरा दोनों तरह का होना खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मन्कूल है।_*
*_इस हदीस की शरह में मुल्ला अली कारी फरमाते हैं। यानी बिदअत के साथ ज़लालत का लफ्ज़ इस लिये लाया गया ताकि बिदअत हस्ना को शामिल न हो।_*
*📚 मिरकात, जिल्द 1, सफ़्हा 202*
*_खुलासा यह कि नियाज़ फातिहा मीलाद शरीफ सलात व सलाम, उर्स और मज़ारात की हाज़िरी कब्र पर आज़ान वगैराह को बिदअत व नाजायज़ कहकर रोकने वालों को इन हदीसों से सबक हासिल करना चाहिये। हक यह है कि यह सब काम अच्छे हैं हाँ वह लोग गलत फहमी का शिकार हैं जो उन्हें फर्ज़ वाजिब समझते हैं और फर्ज़ व वाजिब समझ कर करते हैं। फर्ज़ तो इस्लाम में पांचों वक़्त की नमाज़ रमज़ान के रोज़े हैं माल की ज़कात निकालना है जूये शराब लाटरी सनीमें गाने तमाशों से भी बचना भी फर्ज़ है।_*
*_जो लोग नमाज़ रोज़े को छोड़ कर हराम कामों में है लगे रहते हैं और नियाज़ फातिहा करते हैं और उर्स व मज़ारात की है हाज़िरी को इस्लाम समझे हुये हैं यह लोग भी सख़्त गलत फहमी और बड़ी भूल में हैं और जो अल्लाह के रसूल और दूसरे बुज़ुर्गाने दीन की शान में बेअदब होते हैं गुस्ताखियां करते हैं वह बड़े बदनसीब खुदा और रसूल के दुश्मन और जहन्नम का ईधन हैं खुलासा यह अल्लाह तआला की इबादत हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बताये हुए तरीके पर करना फर्ज़ व ज़रूरी है और यही इस्लाम है और इसके साथ अल्लाह वालों से मोहब्बत के इज़हार के लिये नियाज़ व फातिहा होती रहे तो यह बिहतरीन बात है। इसमें कोई गुनाह नहीं है जबकि यह उर्स व मीलाद वगैराह शरीअत के दायरे में हों इनमें कोई खिलाफ़े शरअ बात न हो जैसे नौटंकी, ढोल, बाजे, गाने, तमाशे, औरतों की बेपरदगी वगैरहा।_*
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