*_आजकल कुछ नफ़्स परस्त जाहिल पीर औरतों को बेहिजाब मुरीद करते हैं बल्कि उनसे पैर तक दबवाया करते हैं और हल्के में बिठाकर ज़िक्र करते करवाते हैं माज़ अल्लाह,ये खुले आम हरामकारी है मगर इन शैतान के चेलों ने उसे अपने लिए जायज़ किया हुआ है,औरतों को ग़ैर महरम से पर्दा करना फ़र्ज़ है फिर चाहे वो पीर ही क्यों ना हो मौला तआला क़ुरान मजीद में इरशाद फरमाता है कि_*
*_मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है.बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं,और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए_*
*📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 30-31*
*_अब अगर इन महरम में से ही कोई पीर है जब तो उनके सामने बे हिजाब आने में कोई हर्ज नहीं वरना हराम हराम हराम है और माज़ अल्लाह अगर इंकार करे जब तो काफ़िर है कि क़ुरान का मुनकिर हुआ,और अगर युंही औरतें बे हिजाब सड़कों,बाज़ारों,मेलों-ठेलों,मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं जब तो अशद गुनाहगार हैं उन पर तौबा वाजिब है और ऐसे पीर पर भी जो बे हिजाब औरतों को मुरीद करते हैं,दूसरी जगह मौला इरशाद फरमाता है कि_*
*_ऐ महबूब अपनी बीवियों और अपनी साहबज़ादिओं और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें,ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जाएं और ना सताई जाएं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है_*
*📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 59*
*_इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफ़िक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे जिस पर ये आयत उतरी कि मौला ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो ना पहचान होगी और ना कोई उन्हें छेड़ेगा,अब आईये आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का एक फतवा भी मुलाहज़ा फरमा लें जो ऐसे जाहिल पीरों के ताल्लुक़ से है फरमाते हैं_*
*_पीर से पर्दा वाजिब है जबकि महरम ना हो और उन्हें मर्दों के साथ बिठाकर ज़िक़्र करना ऐसा कि उनकी आवाज़ तक मर्दों में सुनाई देती हो तो ये ख़िलाफ़े शरअ और ख़िलाफ़े हया है ऐसे पीर से बैयत ना चाहिये_*
*📚 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 181*
*_अब पीर कैसा होना चाहिए उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लीजिये_*
*_पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिये_*
*_! सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानि कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता,कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े_*
*_! आलिम हो यानि कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के_*
*_! फ़ासिक ना हो यानि कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मस्लन झूट,ग़ीबत,चुगली,फ़रेब,फ़हश कलामी,बद नज़री,सूद,रिश्वत का लेन देन,तस्वीर साज़ी,गाने बाजे तमाशो से,ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो_*
*_! उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त उसके पास हो_*
*_जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर 1 भी शर्ते ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा है_*
*📚 सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110*
*_पीर के अन्दर क्या शर्ते होनी चाहिये आपने पढ़ लिया अब अगर किसी के पीर के अन्दर ये शर्ते नहीं पाई जाती तो ख़ुदारा पीर परस्ती ना करके शरह को मुक़द्दम रखें और फौरन उसे छोड़कर किसी बा-शरह पीर का दामन थाम लें कि इसी में ईमान की सलामती है,मौला ताआला हम सबके ईमान की हिफाज़त करे और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललहो तआला अलैहि वसल्लम_*
*_मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है.बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं,और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए_*
*📚 पारा 18,सूरह नूर,आयत 30-31*
*_अब अगर इन महरम में से ही कोई पीर है जब तो उनके सामने बे हिजाब आने में कोई हर्ज नहीं वरना हराम हराम हराम है और माज़ अल्लाह अगर इंकार करे जब तो काफ़िर है कि क़ुरान का मुनकिर हुआ,और अगर युंही औरतें बे हिजाब सड़कों,बाज़ारों,मेलों-ठेलों,मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं जब तो अशद गुनाहगार हैं उन पर तौबा वाजिब है और ऐसे पीर पर भी जो बे हिजाब औरतों को मुरीद करते हैं,दूसरी जगह मौला इरशाद फरमाता है कि_*
*_ऐ महबूब अपनी बीवियों और अपनी साहबज़ादिओं और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें,ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जाएं और ना सताई जाएं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है_*
*📚 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 59*
*_इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफ़िक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे जिस पर ये आयत उतरी कि मौला ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो ना पहचान होगी और ना कोई उन्हें छेड़ेगा,अब आईये आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का एक फतवा भी मुलाहज़ा फरमा लें जो ऐसे जाहिल पीरों के ताल्लुक़ से है फरमाते हैं_*
*_पीर से पर्दा वाजिब है जबकि महरम ना हो और उन्हें मर्दों के साथ बिठाकर ज़िक़्र करना ऐसा कि उनकी आवाज़ तक मर्दों में सुनाई देती हो तो ये ख़िलाफ़े शरअ और ख़िलाफ़े हया है ऐसे पीर से बैयत ना चाहिये_*
*📚 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 181*
*_अब पीर कैसा होना चाहिए उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लीजिये_*
*_पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिये_*
*_! सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानि कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता,कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े_*
*_! आलिम हो यानि कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के_*
*_! फ़ासिक ना हो यानि कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मस्लन झूट,ग़ीबत,चुगली,फ़रेब,फ़हश कलामी,बद नज़री,सूद,रिश्वत का लेन देन,तस्वीर साज़ी,गाने बाजे तमाशो से,ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो_*
*_! उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त उसके पास हो_*
*_जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर 1 भी शर्ते ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा है_*
*📚 सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110*
*_पीर के अन्दर क्या शर्ते होनी चाहिये आपने पढ़ लिया अब अगर किसी के पीर के अन्दर ये शर्ते नहीं पाई जाती तो ख़ुदारा पीर परस्ती ना करके शरह को मुक़द्दम रखें और फौरन उसे छोड़कर किसी बा-शरह पीर का दामन थाम लें कि इसी में ईमान की सलामती है,मौला ताआला हम सबके ईमान की हिफाज़त करे और मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रखे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललहो तआला अलैहि वसल्लम_*
No comments:
Post a Comment