*_आज कितने ही लोग हैं जो लोगों पर ज़ुल्म व ज़्यादती करते हैं और फिर पीरों, फकीरों के यहाँ दुआ तावीज़ात कराते हैं और मज़ारों पर मुरादें मांगते घूमते हैं और मस्जिदों में जाकर लम्बी लम्बी दुआयें मांगते हैं।_*
_कितने शौहर हैं जो बीवियों पर जुल्म ढाते और उनका ख्याल नहीं रखते उन्हें बान्दियों और नौकरानियों से बदतर ज़िन्दगी गुजारने पर मजबूर कर देते हैं न उन्हें तलाक देते हैं और न उनका हक़ अदा करते हैं।_
*_कितनी बीवियां हैं जो अपने शौहरों का खून पीती उनके लिए घरों को जहन्नम का नमूना बना देती हैं। सासों और नन्दों के साए से जलती हैं, कितनी सास और नन्दें हैं जो अपने घरों में आने वाली दुल्हनों के लिए जीना मुश्किल कर देती हैं शौहर बीवी के दरमियान महब्बत उन्हें कांटों की तरह खटकती और कलेजे में चुभती है।_*
_कितने अमीर कबीर रईस ज़मीदार व मालदार लोग हैं जो मज़दूरों का गला घोंटते, नौकरों को मारते पीटते, झिड़कते उनकी मज़दूरियां और तनख्वाहें रोकते और खुद ऐश करते और उनके घर वाले बीवी बच्चों की बददुआयें लेते हैं। कितने ही लोग वह हैं जो जानवरों को पालते हैं लेकिन उनकी भूक, प्यास, जाड़े, गर्मी की परवाह नहीं करते उन्हें बेरहमी से मारते पीटते हैं उनकी ताकत से ज़्यादा उनसे काम लेते और बोझ लादते हैं। खास कर जिबह का पेशा करने वाले जिबह करने से पहले उन्हें भूका प्यासा रखते हैं और उन पर ऐसे ऐसे ज़ुल्म करते हैं कि जिन्हें देखा नहीं जा सकता।_
*_खुलासा यह कि कोई भी ज़ालिम अत्याचारी वे रहम हो जो अपने ऐश व आराम और मालदारी की खातिर दूसरों को सताता और उनका खून पीता है उसकी न खुद अपनी दुआ कबूल होती है न उसके हक में दूसरों की। यह मर्द हों या औरतें, यह शौहर हों या बीवियां, यह सासें और नन्दें हों या बहुएं और भावजें, यह मालदार और ज़मीदार हों या हुक्काम व अधिकारी। अगर यह ज़ालिम व बेरहम और अत्याचारी हैं तो उन्हें चाहिए कि यह लम्बी लम्बी दुआयें मांगने, पीरों फकीरों और मज़ारात पर चक्कर लगाने और दुआ तावीज़ कराने से पहले जिसको सताया है उससे माफ़ी मांग लें जिसका हक दबाया है। वह उसे लौटा दें और ज़ुल्म व ज़्यादती व बेरहमी की आदत छोड़ दें फिर आयें ये मस्जिदों में दुआओं के लिए और खानकाहों में मुरादें मांगने और मियां और मौलवियों के पास गन्डे तावीज़ कराने के लिए। जिसने किसी गरीब, कमज़ोर को सताया है और जिसके पीछे किसी मज़लूम की बददुआ लगी है उसके लिए न कोई दुआ है न तावीज़ ।_*
📖 _हदीस में है कि फ़रमाया रसुलुल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने "अल्लाह तआला" उस पर रहम नहीं फरमाता जो लोगों पर रहम नहीं करता। *''और फरमाते हैं।*_
_मज़लूम की बददुआ से बचों वह अल्लाह तआला से अपना हक़ मांगता है और खुदाए तआला हक़ वाले को उसका हक़ अता फरमाता है।_
📕 *(मिश्कात सफहा 435)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,149 150*
_कितने शौहर हैं जो बीवियों पर जुल्म ढाते और उनका ख्याल नहीं रखते उन्हें बान्दियों और नौकरानियों से बदतर ज़िन्दगी गुजारने पर मजबूर कर देते हैं न उन्हें तलाक देते हैं और न उनका हक़ अदा करते हैं।_
*_कितनी बीवियां हैं जो अपने शौहरों का खून पीती उनके लिए घरों को जहन्नम का नमूना बना देती हैं। सासों और नन्दों के साए से जलती हैं, कितनी सास और नन्दें हैं जो अपने घरों में आने वाली दुल्हनों के लिए जीना मुश्किल कर देती हैं शौहर बीवी के दरमियान महब्बत उन्हें कांटों की तरह खटकती और कलेजे में चुभती है।_*
_कितने अमीर कबीर रईस ज़मीदार व मालदार लोग हैं जो मज़दूरों का गला घोंटते, नौकरों को मारते पीटते, झिड़कते उनकी मज़दूरियां और तनख्वाहें रोकते और खुद ऐश करते और उनके घर वाले बीवी बच्चों की बददुआयें लेते हैं। कितने ही लोग वह हैं जो जानवरों को पालते हैं लेकिन उनकी भूक, प्यास, जाड़े, गर्मी की परवाह नहीं करते उन्हें बेरहमी से मारते पीटते हैं उनकी ताकत से ज़्यादा उनसे काम लेते और बोझ लादते हैं। खास कर जिबह का पेशा करने वाले जिबह करने से पहले उन्हें भूका प्यासा रखते हैं और उन पर ऐसे ऐसे ज़ुल्म करते हैं कि जिन्हें देखा नहीं जा सकता।_
*_खुलासा यह कि कोई भी ज़ालिम अत्याचारी वे रहम हो जो अपने ऐश व आराम और मालदारी की खातिर दूसरों को सताता और उनका खून पीता है उसकी न खुद अपनी दुआ कबूल होती है न उसके हक में दूसरों की। यह मर्द हों या औरतें, यह शौहर हों या बीवियां, यह सासें और नन्दें हों या बहुएं और भावजें, यह मालदार और ज़मीदार हों या हुक्काम व अधिकारी। अगर यह ज़ालिम व बेरहम और अत्याचारी हैं तो उन्हें चाहिए कि यह लम्बी लम्बी दुआयें मांगने, पीरों फकीरों और मज़ारात पर चक्कर लगाने और दुआ तावीज़ कराने से पहले जिसको सताया है उससे माफ़ी मांग लें जिसका हक दबाया है। वह उसे लौटा दें और ज़ुल्म व ज़्यादती व बेरहमी की आदत छोड़ दें फिर आयें ये मस्जिदों में दुआओं के लिए और खानकाहों में मुरादें मांगने और मियां और मौलवियों के पास गन्डे तावीज़ कराने के लिए। जिसने किसी गरीब, कमज़ोर को सताया है और जिसके पीछे किसी मज़लूम की बददुआ लगी है उसके लिए न कोई दुआ है न तावीज़ ।_*
📖 _हदीस में है कि फ़रमाया रसुलुल्लाह (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) ने "अल्लाह तआला" उस पर रहम नहीं फरमाता जो लोगों पर रहम नहीं करता। *''और फरमाते हैं।*_
_मज़लूम की बददुआ से बचों वह अल्लाह तआला से अपना हक़ मांगता है और खुदाए तआला हक़ वाले को उसका हक़ अता फरमाता है।_
📕 *(मिश्कात सफहा 435)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,149 150*
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