*हर नमाज़ सलाम फेर ने पर मुकम्मल हो जाती है। उसके बाद जो दुआ माँगी जाती है। यह नमाज़ मे दाखिल नही। अगर कोई शख़्स नमाज़ पढ़ने यानी सलाम फेरने के बाद बिल्कुल दुआ न मांगे तब भी उसकी नमाज़ मे कमी नही। अलबत्ता एक फजीलत हे मेहरूमी और सुन्नत के खिलाफ वर्जी है। कुछ जगह देखा गया इमाम लोग बहुत लम्बी लम्बी दुआऐ पढ़ते है। और मुकतदी कुछ ख़ुशी के साथ और कुछ बे रगबती से मजबूरन उनका साथ निभाते है। और कोई बग़ैर दुआ मागे या थोड़ी दुआ मांग कर इमाम साहब का पूरा साथ दिये बग़ैर चला जाए तो उसपर ऐतराज करते है। और बुरा जानते है। यह सब उनकी ग़लतफ़मियाँ हैं। इमाम के साथ दुआ मांगना मुक़तदी के ऊपर हरगिज़ लाजिम व जरूरी नही वह नमाज़ पूरी होने के बाद फौरन मुखतसर दुआ मांग कर भी जा सकता है। और कभी किसी मजबूरी और उज्र की बिना पर बग़ैर दुआ मांगे चला जाए तब भी नमाज़ मे कमी नही आती हवाले के*
📗 *(फ़तावा रज़विया जिल्द सोम सफ़हा 278 देखे)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 47*
📗 *(फ़तावा रज़विया जिल्द सोम सफ़हा 278 देखे)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 47*
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