*कुछ लोग़ कुर्आन की तिलावत और नमाज़ या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते है। तो सिर्फ़ होंट हिलाते है। और आवाज़ बिल्कुल नही निकालते है। उनका यह पढ़ना, पढ़ना नही है। और इस तरह पढ़ने से नमाज़ नही होगी और इस तरह कुर्आन तिलावत की तो तिलावत का सबाब नही पायगे। अहिस्ता पढ़ने का मतलब यह है कि कम से कम इतनी आवाज़ जरूर निकले कि कोई रूकावट न हो तो खुद सुनले सिर्फ़ होंट होंट हिलना आवाज का बिल्कुल न निकलना पढ़ना नही है। और इस मसअले का ख़ास ध्यान रखना चाहिए।*
📘 *(फ़तावा आलमगिरी मिस्री जिल्द अव्वल सफ़ा 65 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़ा 69)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 46 47*
_कुछ जगह या कहले तकरीबन तकरीबन सभी जगह कुर्आन खानी हो या किसी मरहूम के लिए इसाले सबाब करने के लिए लोग कुर्आन की तिलावत करते है। कुछ हजरात किरत करके पढ़ते है। कुछ खामोशी इख्तयार करके पढ़ते है। किरत करने बाले हजरात को चाहिए के बह भी खामोशी इख्तयार करके पढ़े जितने मे खुद के कानो तक आवाज़ पहुच सके हा अगर पढ़ने बाला तन्हा है। तो बहतर है। किरत करके ही पढ़े अगर एक साथ कई लोग कुर्आन की तिलावत कर रहे है। तो उन्हे खामोशी यानी इतनी आवाज़ हो के अपने खुद के कानो तक पहुंच सके जिससे दूसरे पढ़ने बालो को भी खलल न हो_
📘 *(फ़तावा आलमगिरी मिस्री जिल्द अव्वल सफ़ा 65 बहारे शरीअत जिल्द 3 सफ़ा 69)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 46 47*
_कुछ जगह या कहले तकरीबन तकरीबन सभी जगह कुर्आन खानी हो या किसी मरहूम के लिए इसाले सबाब करने के लिए लोग कुर्आन की तिलावत करते है। कुछ हजरात किरत करके पढ़ते है। कुछ खामोशी इख्तयार करके पढ़ते है। किरत करने बाले हजरात को चाहिए के बह भी खामोशी इख्तयार करके पढ़े जितने मे खुद के कानो तक आवाज़ पहुच सके हा अगर पढ़ने बाला तन्हा है। तो बहतर है। किरत करके ही पढ़े अगर एक साथ कई लोग कुर्आन की तिलावत कर रहे है। तो उन्हे खामोशी यानी इतनी आवाज़ हो के अपने खुद के कानो तक पहुंच सके जिससे दूसरे पढ़ने बालो को भी खलल न हो_
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