ASHABE KEHF KA BAYAN

*🌹🌹🌹ASHABE KEHF🌹🌹🌹*

*असहाबे कहफ़* 7 मर्द मोमिन *हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम* की उम्मत के लोग थे, उनके नाम में बहुत इख़्तिलाफ़ है लेकिन जो मशहूर है वो दर्ज करता हूं

*1.* मकसलमीना
*2.* यमलीख़ा
*3.* मरतूनस
*4.* बीनूनस
*5.* सारीनूनस
*6.* ज़ूनूनस
*7.* कश्फीतनूनस

उनके साथ 1 कुत्ता भी था जिसका नाम क़ितमीर था
*हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम* के बाद उनकी उम्मत की हालत बदतर हो गयी, वो लोग बुतपरस्ती में मुब्तेला हो गए, उस वक़्त का बादशाह दक़्यानूस,जो कि खुद बुत परस्त था और लोगों को बुत परस्ती करने पर मजबूर करता और न करने पर सज़ा देता, *असहाबे कहफ़* शहरे रोम के सरदार और ईमान वाले लोग थे, एक मर्तबा अपनी क़ौम के साथ ईद मनाने गए तो देखा कि लोग बुत परस्ती में लगे हुए हैं, इनका वहां जी न लगा और एक एक करके सब वहां से निकल गए,सातों एक ही पेड़ ने नीचे जमा हो गए, सब एक दूसरे से अनजान थे और यही सोच रहे थे कि अगर मेरा हाल इन्हें पता चला तो ये दुश्मन हो जाएंगे, आखिर उनमें से एक बोला कि कोई बात तो है जो हमें यहां शहर से दूर ले आयी है, तब सबने एक ज़बान होकर ये कहा कि हम बुत परस्ती से आजिज़ आकर यहां आ गए हैं, फिर क्या था उनके दिल में मुहब्बत की लहर दौड़ गयी और वो दोस्त और भाई की तरह हो गए, और वहीं *एक अल्लाह* की इबादत में लग गए पर किसी तरह बादशाह तक ये खबर पहुंच गयी, उसने गिरफ्तार करके बहुत अज़ीयत दी मगर ये लोग अपने दीन पर क़ायम रहें, आखिर एक दिन मौका पाकर ये लोग वहां से भाग निकले मगर एक कुत्ता जो पहले से ही इनसे मानूस था वो इनके पीछे पीछे हो लिया, ये उसको मारकर भगा देते कि कहीं ये भौंक कर हमारा राज़ न फाश कर दे मगर वो फिर आ जाता हत्ता कि आखिर में इतना मारा कि वो चलने से मजबूर हो गया मगर फिर भी घिसट घिसट कर वो इनके पीछे आता रहा, *हदीसे पाक* में आता है कि *असहाबे कहफ़* से मुहब्बत रखने की बिना पर ये कुत्ता भी जन्नत में जाएगा! ये लोग रात भर चलते रहे और सुबह को *शहर रक़ीम* के क़रीब 1 *ग़ार* में दाखिल हुए और सो गए, जब ये ग़ार में दाखिल हुए तो किसी तरह बादशाह को पता चल गया तो उसने ये हुक्म दिया कि ग़ार के बाहर एक दीवार खींच दी जाए जिससे कि वो अन्दर ही मर जाएं और उसने जिस आदमी को ये काम सौंपा वो एक नेक शख्स था, उसने दीवार तो खींच दी मगर तांबे की तख्ती पर उनके नाम उनकी तादाद और उनका पूरा हाल लिखकर एक तख्ती ग़ार में टांग दी और एक ख़ज़ाने में भी छिपा दी! *अल्लाह* ने उनपर ऐसी नींद मुसल्लत कर दी कि ये तक़रीबन *300 साल* तक उसी ग़ार में सोते रहे, ये *249 ईसवी में सोये और 549 ईसवी* में जागे, और *हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम* की विलादत बा सआदत 570 ईसवी में है, मलतब इनके जागने का वाक़या *हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम* की विलादत से *21 साल* पहले पेश आया! वक़्त गुज़रता गया बादशाह दक़्यानूस मर खप गया, और फिर एक नेक *बादशाह बैदरूस* गद्दी पर बैठा, और उस वक़्त उम्मत में ये गुमराहियत फैली हुई थी कि कोई भी मरने के बाद दुबारा जिंदा होने पर ईमान न रखता था, वो नेक बादशाह बहुत परेशान था, उसी ज़माने में एक चरवाहे ने उसी ग़ार को अपनी बकरियों के आराम के लिए चुना और दीवार गिरा दी मगर उसकी हैबत से वहां से भाग गया, आखिर कार *असहाबे कहफ़* की नींद टूटी और सब के सब उठे तो वो शाम का वक़्त था, उन्होंने समझा कि हम सुबह को सोये हैं और शाम को उठे हैं, *सलाम कलाम व इबादते इलाही* के बाद इनको भूख लगी तो इनमें से एक हज़रात खाना लेने के लिए बाज़ार की तरफ गए तो देखते क्या हैं कि हर कोई *हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम* की कसम खाता फिरता है ये सोचने लगे कि कल तक तो यहां कोई *हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम* का नाम भी ना ले सकता था फिर आखिर एक दिन में ऐसा क्या हो गया, फिर इन्होंने खाने का सामान खरीदा और अपने वक़्त का रुपया दिया जिसे देखकर दुकानदारों ने समझा कि शायद इन्हें कहीं से खज़ाना मिल गया है और सिपाहियों को खबर कर दी, आखिर कार इन्हे बादशाह के सामने ले जाया गया तो इन्होंने सारी हक़ीक़त बयान कर दी और कहा कि मेरे कुछ साथी भी हैं जो फिलहाल ग़ार में हैं, उन्हीं दिनों बादशाह को वो तख्ती भी ख़ज़ाने से बरआमद हुई अब तो बादशाह अपने साथ एक कसीर जमात लेकर उनकी ग़ार की तरफ़ चल पड़ा, उनके साथ पूरे शहर का हुजूम भी था, जब ये बादशाह को लेकर अंदर दाखिल हुए तो वो सब कसरत से आदमी को देखकर डरे मगर जब इन्होंने पूरी हक़ीक़त बयान की तो सबकी जान में जान आयी, सब आपस में मिलकर बेहद खुश हुए और बादशाह को वहां वो तख्ती भी मिली जिसे पढ़कर कोई शक़ बाक़ी ना रहा, बादशाह ने *हम्दे इलाही* किया और लोगों से ख़िताब किया कि क्या अब भी तुम लोगों को *अल्लाह की क़ुदरत* यानि मौत के बाद ज़िंदा होने पर शक है, तो सब के सब मौत के बाद ज़िंदा होने पर ईमान लाये, *असहाबे कहफ़* ने बादशाह से कहा कि अब हमें परेशान न किया जाए हम फिर वहीं जाते हैं, और ये कहकर वो फिर से उसी ग़ार में दाखिल हो गए और सो गए, और आज तक सो ही रहें हैं रिवायत में आता है कि ये सभी *हज़रात मुहर्रम की दसवीं* को करवट बदलते हैं, और क़यामत के क़रीब *हज़रत इमाम मेंहदी रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु* के दौर में उठेंगे और आप के साथ मिलकर दुश्मनो से जिहाद करेंगे, *बादशाह बैदरूस* ने उनकी ग़ार पर एक *मस्जिद* तामीर करवाई जिसका ज़िक्र क़ुरान में मौजूद है और हर साल उनकी ग़ार पर खुद भी हाज़िरी देने आता था और तमाम लोगों को भी हुक्म करता था

*🌹🌹असहाबे कहफ़ के नामों की बरक़त🌹🌹*

*हज़रत इब्ने अब्बास रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु* ने 15 फ़वायद बयान किये हैं:

*1.* घर के दरवाज़े पर लिख कर टांग दें तो मकान जलने से महफ़ूज़ रहे
*2.* माल में रख दें तो चोरी ना हो
*3.* कशती में रख दें तो गर्क़ ना हो
*4.* भागा हुआ शख्स वापस आ जाये
*5.* आग में लिखकर डाल दें तो आग बुझ जाये
*6.* जो बच्चा ज़्यादा रोता हो उसकी तक़िया के नीचे रखें तो चुप हो जाये
*7.* अगर बारी का बुखार आता हो तो बाज़ू पर बांधे बुखार जाता रहे
*8.* दर्दे सर
*9.* उम्मुस सुब्यान
*10.* खुश्की व तरी में जान माल की हिफ़ाज़त
*11.* अक़्ल की तेज़ी के लिये
*12.* खेती की हिफ़ाज़त के लिये खेत के बीच में लगायें
*13.* अगर किसी सख्त अफ़सर के सामने जाना हो तो दाई रान पर बांध कर जायें,नर्मी बरतेगा
*14.* क़ैदी की रिहाई के लिये मुफ़ीद है
*15.* बच्चे की विलादत में आसानी के लिये औरत की बाई रान पर बांधे, विलादत में आसानी हो
*📕पारा 15, सूरह कहफ़, आयत 21*
*📕 तफ़सीर ख़ज़ाएनुल इरफान, पारा 15, ज़ेरे आयत*
*📕हाशिया 14, जलालैन, सफह 243*
*📕तफ़सीर हक़्क़ानी, पारा 15, सफह 71*

*🌹SUBHANALLAH🌹*
*🌹SUBHANALLAH🌹*

*🌹🌹AALAH WALON KE NAAMON MEIN BADI BARKAT HOTI HAI, ALLAH RABBUL IZZAT HUMEN BHI BA BARKAAT NAAMON SE FAYDA UTHANE KI TAUFEEQ ATA FARMAYE🌹🌹*

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