بسم الله الرحمن الرحيم
الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ
सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ने की कितनी सूरतें हैं?
जवाब- छः सूरतें हैं, (1)फ़र्ज़ (2)वाजिब (3)सुन्नत (4)मुस्तहब (5)मकरूह (6)हराम।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना फ़र्ज़ है?
जवाब- पूरी ज़िन्दगी में एक बार पढ़ना फ़र्ज़ है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना वाजिब है?
जवाब- अल्लामा तहावी के नज़दीक जब-जब हुजूर(सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम)का नाम लिया जाए हर बार पढ़ना वाजिब है लेकिन सही कौल यह है कि एक बार वाजिब और हर बार मुस्तहब है।
(ताहतावी सफ़्हा 157/दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- क्या पूरा दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब है?
जवाब- नहीं सिर्फ "अल्लाहुम-म-सल्लि अला मुहम्मद" तक वाजिब है इस पर ज़्यादा करना सुन्नत है।
(ख़ाज़िन जिल्द 5 सफ़्हा 225)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना सुन्नत है?
जवाब- नमाज़ के आख़री क़ायदे में और नमाज़-जनाज़ा की दूसरी तकबीर के बाद दुरूद शरीफ़ पढ़ना सुन्नत है।
ताहतावी सफ़्हा 157/रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मुस्तहब है?
जवाब- रात और दिन में जब-जब मौका मिले पढ़ना मुस्तहब है इसी तरह जुमे के दिन और रात में मस्जिद में जाते वक़्त या मस्जिद से निकलते वक़्त दुआऐ कुनूत के बाद वुजु करते वक़्त दुरूद शरीफ़ पढ़ना मुस्तहब है।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मकरूह है?
जवाब- आख़री क़ायदे और दुआए कुनूत के इलावा नमाज़ के किसी रूक्न में दुरूद पढ़ना मकरूह है इसी तरह ताजिर का ख़रीदार को सामान दिखाते वक़्त इस गर्ज़ से दुरूद शरीफ़ पढ़ना कि उस चीज़ की अच्छाई ख़रीदार पर ज़ाहिर हो दुरूद पढ़ना मकरूह है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- क्या हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम को भी अपने ऊपर दुरूद भेजना वाजिब था?
जवाब- नहीं था।
(ताहतावी सफ़्हा 158)
सवाल- तमाम दुरूदों में अफ़ज़ल कौनसा दुरूद है?
जवाब- सब दुरूदों में अफ़ज़ल दुरूद वह है जिसे नमाज़ में मुक़र्रर किया गया है यानी दुरूदे इब्राहिम।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 3 सफ़्हा 84)
सवाल- दुरूद शरीफ़ की जगह आधे-अधूरे(स,अ,व)लफ्ज लिखना कैसा है?
जवाब- नाजायज़ व सख़्त हराम है इमाम जलालुदूदीन सयूती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं पहला वह शख़्स जिसने दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख्तेसार किया उसका हाथ काटा गया।
(फ़तावा अफ़रीक़ा सफ़्हा 45)
الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ
सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ने की कितनी सूरतें हैं?
जवाब- छः सूरतें हैं, (1)फ़र्ज़ (2)वाजिब (3)सुन्नत (4)मुस्तहब (5)मकरूह (6)हराम।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना फ़र्ज़ है?
जवाब- पूरी ज़िन्दगी में एक बार पढ़ना फ़र्ज़ है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- किस सूरत में दुरूद पढ़ना वाजिब है?
जवाब- अल्लामा तहावी के नज़दीक जब-जब हुजूर(सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम)का नाम लिया जाए हर बार पढ़ना वाजिब है लेकिन सही कौल यह है कि एक बार वाजिब और हर बार मुस्तहब है।
(ताहतावी सफ़्हा 157/दुर्रे मुख्तार मअ रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- क्या पूरा दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब है?
जवाब- नहीं सिर्फ "अल्लाहुम-म-सल्लि अला मुहम्मद" तक वाजिब है इस पर ज़्यादा करना सुन्नत है।
(ख़ाज़िन जिल्द 5 सफ़्हा 225)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना सुन्नत है?
जवाब- नमाज़ के आख़री क़ायदे में और नमाज़-जनाज़ा की दूसरी तकबीर के बाद दुरूद शरीफ़ पढ़ना सुन्नत है।
ताहतावी सफ़्हा 157/रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मुस्तहब है?
जवाब- रात और दिन में जब-जब मौका मिले पढ़ना मुस्तहब है इसी तरह जुमे के दिन और रात में मस्जिद में जाते वक़्त या मस्जिद से निकलते वक़्त दुआऐ कुनूत के बाद वुजु करते वक़्त दुरूद शरीफ़ पढ़ना मुस्तहब है।
(रददुल मुहतार जिल्द 1 सफ़्हा 363)
सवाल- किन सूरतों में दुरूद पढ़ना मकरूह है?
जवाब- आख़री क़ायदे और दुआए कुनूत के इलावा नमाज़ के किसी रूक्न में दुरूद पढ़ना मकरूह है इसी तरह ताजिर का ख़रीदार को सामान दिखाते वक़्त इस गर्ज़ से दुरूद शरीफ़ पढ़ना कि उस चीज़ की अच्छाई ख़रीदार पर ज़ाहिर हो दुरूद पढ़ना मकरूह है।
(ताहतावी सफ़्हा 157)
सवाल- क्या हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैहे वसल्लम को भी अपने ऊपर दुरूद भेजना वाजिब था?
जवाब- नहीं था।
(ताहतावी सफ़्हा 158)
सवाल- तमाम दुरूदों में अफ़ज़ल कौनसा दुरूद है?
जवाब- सब दुरूदों में अफ़ज़ल दुरूद वह है जिसे नमाज़ में मुक़र्रर किया गया है यानी दुरूदे इब्राहिम।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 3 सफ़्हा 84)
सवाल- दुरूद शरीफ़ की जगह आधे-अधूरे(स,अ,व)लफ्ज लिखना कैसा है?
जवाब- नाजायज़ व सख़्त हराम है इमाम जलालुदूदीन सयूती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं पहला वह शख़्स जिसने दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख्तेसार किया उसका हाथ काटा गया।
(फ़तावा अफ़रीक़ा सफ़्हा 45)
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