بسم الله الرحمن الرحيم
الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ
सवाल- चाँद और सूरज कहाँ हैं?
जवाब- तहक़ीक यह है कि चाँद और सूरज ज़मीन और आसमान के दरमियान एक घेरे में है।
(तफ़सीर नसफ़ी जिल्द 3 सफ़्हा 78/इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 58)
सवाल- सितारे कहाँ हैं?
जवाब- ज़मीन और आसमान के बीच में नूरानी जन्ज़ीरों में लटकी हुई कन्दीलों के अन्दर हैं और यह ज़न्जीरें फ़रिश्तों के हाथों में हैं।
(तफ़सीरे कबीर जिल्द 8 सफ़्हा 338/तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 61)
सवाल- क्या चाँद सूरज और सितारे मुतहरिंक हैं?
जवाब- हाँ यह तीनों मुतहरिंक है इन्सान तीनों की हरकत नस्से कतई से साबित है इरशादे रब्बानी है"कुल्लु फी फल किनयसबहून" हर एक एक घेरे में तैर रहा है यहाँ लफ़्ज़े कुल अपने उमूम के ऐतेबार से चाँद सूरज और सितारे सब शामिल है।
(जलालैन शरीफ सफ़्हा 272)
सवाल- क्या चाँद और सूरज बिज़्ज़ात रौशन हैं?
जवाब- सूरज की रौशनी तो बिज़्ज़ात है और वह बिज़्ज़ात ही रौशन है मगर चाँद की रौशनी बिज़्ज़ात नहीं बल्कि चाँद की रौशनी सूरज की रौशनी से फ़ायदा हासिल करके पैदा होती है।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 152/फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 650)
सवाल- चाँद और सूरज का रूख किस तरह है?
जवाब- रूख आसमान की तरफ और पीठ ज़मीन की तरफ है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 129)
सवाल- क्या चाँद ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- नहीं बल्कि जमीन चाँद से चौगुनी बड़ी है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 55)
सवाल- क्या सूरत ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- हाँ तक़रीबन तेरह लाख गुना बड़ा है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 51)
सवाल- चाँद ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- दो लाख मील से कुछ ज्यादा दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 54)
सवाल- सूरज ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- नौ करोड़ तीस खाल मील की दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा51)
सवाल- सूरज का ठहरना या लौटना कितनी मर्तबा हुआ?
जवाब- सात बार हुआ चार मर्तबा हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये और तीन बार दूसरे नबियों के लिये,
(1)हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के लिये जब आप जिहाद के लिये घोड़ों का मुआयना फरमा रहे थे कि सूरज गुरूब हो गया और असर की नमाज़ क़जा हो गई तो आपने दुआ की तो सूरज लौट आया फिर आपने असर की नमाज़ अदा की,
(2)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिये जब अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से बनी इसराईल को साथ लेकर चलने का हुक्म दिया तो यह भी फ़रमाया था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का ताबूत साथ लेते जाना इधर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बनी इसराईल से कह दिया कि फज्र के वक़्त निकलेंगे और ताबूत के तलाश करने में लग गऐ यहाँ तक कि फज्र तुलूअ होने के क़रीब हो गया लेकिन ताबूत का पता न चला तो आपने अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ की ऐ अल्लाह तुलूअ आफ़ताब को मुअख्खर फ़रमादे इसलिए सूरज आपके लिये ठहरा रहा यहाँ तक कि ताबूत हासिल हो गया,
(3)हज़रत यूशअ बिन नुन के लिये जब आप बैतुल मुकद्दर के महाज़ पर कौमे जब्बारीन से जिहाद फ़रमा रहे थे जुमे का दिन था अभी जंग फ़तह होने में देर थी यहाँ तक कि सूरज डूबने लगा अगला दिन हफ्ते का था जिसमें जंग करना करना हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की शरीअत में जाइज़ नही था आपने दुआ फरमाई और सूरज आपकी दुआ से ठहर गया जब जंग फ़तह हो गई और ज़ालिमों को हार हुई तो गुरूब हो गया,
(4)जंगे-ख़न्दक के मौके पर हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये जब आप की असर की नमाज़ क़ज़ा हो गई,
(5)हज़रत जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने एक बार सूरज को हुक्म दिया तो थोड़ी देर तक ठहरा रहा,
(6)मेराज की रात वापसी में आपने मक्के वालों को ख़बर दी थी कि तुम्हारा क़ाफ़िला जो तिजारत के लिये गया हुआ है सूरज निकलने से पहले पहुँचने वाला है हुस्ने इत्तेफ़ाक़ के क़ाफ़िले के पहुँचने में देर हो गई और सूरज निकलने वाला ही था कि आपने दुआ फरमाई और सूरज ठहर गया,
(7)मन्ज़िले सहबा पर हज़रत अली मुर्तजा के लिये आपके हुक्म से सूरज लौट आया।
(रूहुल बयान जिल्द 3 सफ़्हा 347/सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 422/उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 146/अलअम्नु वल उला सफ़्हा 103)
الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ
सवाल- चाँद और सूरज कहाँ हैं?
जवाब- तहक़ीक यह है कि चाँद और सूरज ज़मीन और आसमान के दरमियान एक घेरे में है।
(तफ़सीर नसफ़ी जिल्द 3 सफ़्हा 78/इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 58)
सवाल- सितारे कहाँ हैं?
जवाब- ज़मीन और आसमान के बीच में नूरानी जन्ज़ीरों में लटकी हुई कन्दीलों के अन्दर हैं और यह ज़न्जीरें फ़रिश्तों के हाथों में हैं।
(तफ़सीरे कबीर जिल्द 8 सफ़्हा 338/तफ़सीर अज़ीज़ी पारा 30 सफ़्हा 61)
सवाल- क्या चाँद सूरज और सितारे मुतहरिंक हैं?
जवाब- हाँ यह तीनों मुतहरिंक है इन्सान तीनों की हरकत नस्से कतई से साबित है इरशादे रब्बानी है"कुल्लु फी फल किनयसबहून" हर एक एक घेरे में तैर रहा है यहाँ लफ़्ज़े कुल अपने उमूम के ऐतेबार से चाँद सूरज और सितारे सब शामिल है।
(जलालैन शरीफ सफ़्हा 272)
सवाल- क्या चाँद और सूरज बिज़्ज़ात रौशन हैं?
जवाब- सूरज की रौशनी तो बिज़्ज़ात है और वह बिज़्ज़ात ही रौशन है मगर चाँद की रौशनी बिज़्ज़ात नहीं बल्कि चाँद की रौशनी सूरज की रौशनी से फ़ायदा हासिल करके पैदा होती है।
(सावी जिल्द 2 सफ़्हा 152/फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 650)
सवाल- चाँद और सूरज का रूख किस तरह है?
जवाब- रूख आसमान की तरफ और पीठ ज़मीन की तरफ है।
(ख़ाज़िन व मआलिम जिल्द 7 सफ़्हा 129)
सवाल- क्या चाँद ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- नहीं बल्कि जमीन चाँद से चौगुनी बड़ी है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 55)
सवाल- क्या सूरत ज़मीन से बड़ा है?
जवाब- हाँ तक़रीबन तेरह लाख गुना बड़ा है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 51)
सवाल- चाँद ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- दो लाख मील से कुछ ज्यादा दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा 54)
सवाल- सूरज ज़मीन से कितनी दूरी पर है?
जवाब- नौ करोड़ तीस खाल मील की दूरी पर है।
(इस्लाम और चाँद का सफ़र सफ़्हा51)
सवाल- सूरज का ठहरना या लौटना कितनी मर्तबा हुआ?
जवाब- सात बार हुआ चार मर्तबा हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये और तीन बार दूसरे नबियों के लिये,
(1)हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के लिये जब आप जिहाद के लिये घोड़ों का मुआयना फरमा रहे थे कि सूरज गुरूब हो गया और असर की नमाज़ क़जा हो गई तो आपने दुआ की तो सूरज लौट आया फिर आपने असर की नमाज़ अदा की,
(2)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिये जब अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से बनी इसराईल को साथ लेकर चलने का हुक्म दिया तो यह भी फ़रमाया था कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का ताबूत साथ लेते जाना इधर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बनी इसराईल से कह दिया कि फज्र के वक़्त निकलेंगे और ताबूत के तलाश करने में लग गऐ यहाँ तक कि फज्र तुलूअ होने के क़रीब हो गया लेकिन ताबूत का पता न चला तो आपने अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ की ऐ अल्लाह तुलूअ आफ़ताब को मुअख्खर फ़रमादे इसलिए सूरज आपके लिये ठहरा रहा यहाँ तक कि ताबूत हासिल हो गया,
(3)हज़रत यूशअ बिन नुन के लिये जब आप बैतुल मुकद्दर के महाज़ पर कौमे जब्बारीन से जिहाद फ़रमा रहे थे जुमे का दिन था अभी जंग फ़तह होने में देर थी यहाँ तक कि सूरज डूबने लगा अगला दिन हफ्ते का था जिसमें जंग करना करना हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की शरीअत में जाइज़ नही था आपने दुआ फरमाई और सूरज आपकी दुआ से ठहर गया जब जंग फ़तह हो गई और ज़ालिमों को हार हुई तो गुरूब हो गया,
(4)जंगे-ख़न्दक के मौके पर हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के लिये जब आप की असर की नमाज़ क़ज़ा हो गई,
(5)हज़रत जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने एक बार सूरज को हुक्म दिया तो थोड़ी देर तक ठहरा रहा,
(6)मेराज की रात वापसी में आपने मक्के वालों को ख़बर दी थी कि तुम्हारा क़ाफ़िला जो तिजारत के लिये गया हुआ है सूरज निकलने से पहले पहुँचने वाला है हुस्ने इत्तेफ़ाक़ के क़ाफ़िले के पहुँचने में देर हो गई और सूरज निकलने वाला ही था कि आपने दुआ फरमाई और सूरज ठहर गया,
(7)मन्ज़िले सहबा पर हज़रत अली मुर्तजा के लिये आपके हुक्म से सूरज लौट आया।
(रूहुल बयान जिल्द 3 सफ़्हा 347/सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 422/उम्दतुल क़ारी जिल्द 7 सफ़्हा 146/अलअम्नु वल उला सफ़्हा 103)
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