Part 1


‎ بسم الله الرحمن الرحيم‎
बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम
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अक़ाईद का बयान(1)
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सवाल- अक़ाइद के इमाम कितने हैं?
जवाब- दो हैं,एक हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी,दूसरे सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी रहमतुल्लाह अलैहिमा।
(रोज़ तुलबहिया सफ़्हा 3 निबरास सफ़्हा 229)
नोट- अक़ाइद अक़ीदे की जमा यानी बहु वचन है इस्लाम में जिन बातों का जुबान के के साथ दिल से गवाही देना जरूरी है वह अक़ीदा कहलाती है।

सवाल- क्या दोनों इमाम बरहक़(सही)हैं?
जवाब- यह दोनों इमाम बरहक़ हैं, अस्ल अक़ाइद में दोनों एक हैं अल्बत्ता इख्तेलाफ है तो सिर्फ अक़ाइद के फुरूअ(अस्ल से निकली हुई बातों)में।
(बहारे शरीअत जिल्द 1 सफ़्हा 53)

सवाल- जो इन्सान इन दोनों इमामों के खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे वह एहले सुन्नत में दाख़िल है या नहीं?
जवाब- एहले सुन्नत इन्हीं दोनों इमामों की पैरवी करते हैं मातुरीदया हज़रत सय्यिदुना इमाम अबु मन्सूर मातुरीदी की अशाइरा और हज़रत सय्यिदुना इमाम अबुल हसन अशअरी की तो एहले सुन्नत की यही दो जमाअतें हैं जो इनके खिलाफ़ कोई अक़ीदा रखे और वह अक़ीदा कुफ्र की हद तक नहीं पहुँच है तो वह गुमराह है और अगर कुफ्र की हद तक पहुँचा गया है तो काफ़िर और एहले सुन्नत से खारिज है।
(मज़हबे इस्लाम सफ़्हा 4)

सवाल- मसाइल के इमाम कितने हैं?
जवाब- इस वक़्त चार हैं इमामे आज़म,इमाम शाफ़ेई,इमाम मालिक,इमाम अहमद बिन हंबल, दूसरी सदी के बाद उम्मत ने इन्हीं चारों इमामों पर इत्तेफाक कर लिया है इससे पहले कुछ इमाम और भी हुऐ हैं लेकिन उनके मसलक कुछ जमाने तक चले और ख़त्म हो गऐ।
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 3 सफ़्हा 321)

सवाल- क्या इन चार इमामों में से किसी एक की पैरवी जरूरी है?
जवाब- हाँ शरीअत के मसाइल पर अमल करने के लिए किसी एक खास इमाम की पैरवी करना ज़रूरी है वरना वह शरीअत पर अमल करने वाला नहीं होगा बल्कि अपनी ख्वाहिश पर अमल करेगा और गुमराह होगा इस वक़्त इन चार के सिवा किसी की पैरवी जाइज़ नहीं अब सही और हक़ मज़हब इन्हीं चारों में महफूज़ है और जो इन चारों से ख़ारिज है गुमराह और बे दीन है।
(तहतावी जिल्द 4 सफ़्हा 153/सावी जिल्द 3 सफ़्हा 9)

सवाल- अगर चारो इमाम बरहक हैं तो इख्तेलाफ किस बात में है?
जवाब- यह चारों अस्ल अक़ाइद में मुत्तहिद हैं और इख्तेलाफ सिर्फ फुरूई मसाइल में है।
(मज़हबे इस्लाम सफ़्हा 5)
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हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

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