हज़ का बयान

بسم الله الرحمن الرحيم‎
*बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रिहीम*

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*अस्सालातु वसल्लामु अलैहका या रसूलउल्लाह सल्ललाहो अलैह वसल्लम*

सवाल- हज़ किस सन् में फ़र्ज़ हुआ?
*जवाब- सन्9 हिज़री के आख़िर में फ़र्ज़ हुआ।*
(दुर्रे मुख़्तार व रददुल मोहताज़ ज़िल्द2 सफ़्हा143)

सवाल- ‎नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किस सन् में हज़ अदा फ़रमाया?
*जवाब- सन्10 हिज़री में अदा फ़रमाया।*
(दुर्रे मुख़्तार व रददुल मोहताज़ ज़िल्द2 सफ़्हा143)

सवाल- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कितनी बार हज़ अदा फ़रमाया?
*जवाब- हिज़रत से पहले दो या तीन हज़ अदा फरमाऐ और हिज़रत के बाद मदीना मुनव्वरा से सिर्फ एक हज़ अदा फ़रमाया बो हज़्ज़तुल वदाअ के नाम से मशहूर है हज़ के इलावा आपने चार उमरे भी अदा किये।*
(इरशादुस्सारा सफ़्हा11)

सवाल- क्या हज़ की फ़ज़ीलत इसी उम्मत के सात खास है?
*जवाब- हाँ इसी उम्मत के साथ ख़ास है किसी और नबी की उम्मत पर हज़ फ़र्ज़ नहीं हुआ।*
(सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा190/शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत सफ़्हा3)

सवाल- क्या पिछले अंबिया किराम को भी हज़ करना फ़र्ज़ था?
*जवाब- मुल्ला अली क़ारी की किताब"शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत"और अल्लामा हलबी की किताब सीरत हलबी की जाहिर इबारत से पता चलता है कि आम्बिया किराम पर भी हज़ फ़र्ज़ था।*
(शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत सफ़्हा3/सीरत हलबी जिल्द1 सफ़्हा190)
*लेकिन आला हजरत फाज़िले बरेलवी फरमाते हैं कि फरज़ियत का हाल तो अल्लाह तआला बेहतर जाने अलबत्ता आम्बिया किराम हज़ करते रहे।*
(अल्मलफुज़ जिल्द1 सफ़्हा74)

सवाल- क्या हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर भी हज़ करना फ़र्ज़ था?
*जवाब- हक़ीक़ते हाल तो खुदा को मालूम अलबत्ता अल्लामा शामी और मुल्ला अली क़ारी की जाहरी इबारत से मालूम होता है कि आप पर भी हज़ की फरज़ियत नाज़िल हुई।*
(रददुल मोहताज़ जिल्द2 सफ़्हा143/शरह अल्मसलकुल मुतकस्सीत  सफ़्हा3)

सवाल- किसी को एक हज़ या चन्द हज़ मयस्सर होते हैं और किसी को बिलकुल नहीं इसकी वज़ह क्या है?
*जवाब- हक़ीक़त हाल का इल्म तो अल्लाह तआला को है अलबत्ता रिवायत में है कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खान ए काबा की फरमाई तो रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया की ऐ इब्राहीम आवाज़ दो की तुम्हारे रब का घर तैयार हो गया है इस घर की ज़ियारत व तवाफ़ के लिये चले आओ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आवाज़ को सारे जहान के लोगों तक और जो नस्लें क़यामत तक माँ के पेटों में और बाप की रीड़ की हड्डियों में थीं उनमें भी रूह डाल कर आवाज़ पहुँचाई गई इस आवाज़ पर जिसने जितनी बार लब्बैक कहा उसको उतने ही हज़ मयस्सर हुऐ किसी ने एक मर्तबा किसी ने दो बार किसी ने तीन बार कहा इसी तरह और ज्यादा और जिसने बिलकुल नहीं कहा उसको कोई हज़ मयस्सर नहीं हुआ।*
(तफ़्सीर अज़ीज़ी सूरए बक़र सफ़्हा407/उम्दातुल क़ारी ज़िल्द4 सफ़्हा485)

सवाल- हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आवाज़ पर सबसे पहले लबबेक किन लोगों ने कहा?
*जवाब- एहले यमन ने कहा।*
(सावी जिल्द3 सफ़्हा83)

सवाल- हज़ वाज़िब होने के लिये कितनी शर्त हैं?
*जवाब- आठ शर्ते हैं(1)इस्लाम(2)दारुल हरब में हो तो यह भी जरुरी है कि जानता हो कि हज़ इस्लाम में फ़राइज़ में से है(3)बालिग़ होना(4)अक्लमंद होना(5)आज़ाद होना(6)तन्दरुस्त हो कि हज़ को जा सके अअज़ा सलामत हों अँख्यारा हो अपाहिज और फालिज वाले जिसके पाँव कटे हों और बूढ़े पर कि सवारी पर खुद न बेठ सकता हो हज़ फ़र्ज़ नहीं(7)सफ़र ख़र्च का मालिक हो(8)वक़्त यानी हज़ के महीने में तमाम शर्ते पाई जाए।*
(बहारे शरीअत जिल्द6 सफ़्हा8से13)

सवाल- हज़ में कितनी चीजें फ़र्ज़ हैं?
*जवाब- सात चीज़े फ़र्ज़ हैं(1)एहराम बाँधना(2)वुक़ूफे अरफ़ा यानी जिज़हिज़्ज़ा की नवीं तारीख़ के सूरज ढलने से दसवीं की सुबह सादिक़ से पहले किसी वक़्त अरफ़ात में ठहरना(3)तवाफ़े ज़ियारत का ज्यादा हिस्सा यानी चार फेरे(4)नियत(5)तरतीब यानी पहले एहराम बाँधना फिर वुक़ूफ़ फिर तवाफ़(6)हर फ़र्ज़ का अपने वक़्त पर होना(7)मकान यानी वुक़ूफ़(ठहरना)ज़मीने आरफात में होना और तवाफ़ का मस्जिदें हराम से होना।*
(बहारे शरीअत6 सफ़्हा15)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)

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