नमाज़-ऐ-जऩाजा का बयान

بسم الله الرحمن الرحيم‎
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

सवाल- नमाजे जऩाजा की इब्तिदा कब से हुई?
*जवाब- हजरत आदम अलैहिस्सलाम के जमाने से है।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 467)

सवाल- हजरत आदम अलैहिस्सलाम की नमाज़-ए-जऩाजा किसने पढ़ी?
*जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम।*
(तफसीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 172)

सवाल- इस्लाम में सबसे पहले नमाज़-ए-जऩाजा किसकी पढ़ी गई?
*जवाब- हजरत असद बिन जुरारह की खुद हुजूरे अनवर सल्ललाहु अलैहे वसल्लम ने नमाज़-ए-जऩाजा पढ़ी।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 468)

सवाल- नमाज़-ए-जऩाजा में किस सैफ में खड़ा होना ज्यादा अफ़ज़ल है?
*जवाब- आखिरी सफ में खड़ा होना ज्यादा अफ़ज़ल है।*
(दुर्र मुख़्तार व रदृदूल मोहताज जिल्द 1 सफ़्हा 611)

सवाल- इस्लाम में नमाज़-ए-जऩाजा की मशरूइयत कब और कहाँ हुई?
*जवाब- मदीना ए मुनव्वरा में हिजरत के तकरीबन नवें महीने में हुई।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफहा 468)

सवाल- वह कौन लोग है जिनकी नमाज़-ए-जऩाजा नहीं पढ़ी जाती है?
*जवाब- (1)बाग़ी जो इमामे बरहक़ पर ना हक़ खुरूज का(बग़वत)और उसी बग़वत में मारा जाऐ,*
*(2)डाकु कि डाका ज़नी में मारा जाऐ,*
*(3)जो लौग नाहक पासदारी से लड़ें,*
*(4)जो शख्स कई आदमियों को गला घोंट कर मार डाले,*
*(5)जो शख्स शहर में रात को हथियार लेकर लूट मार करें और इसी हालत में मर जाऐ,*
*(6)जो अपने माँ बाप को मार डाले,*
*(7)जो किसी का सामान छीन रहा था और उसी हालत मे मर गया।*
(आलमगीरी जिल्द 1 सफ़्हा 83/दुर्र मुख्तार व रदृदूल मोहताज जिल्द 1 सफ़्हा 609)

सवाल- हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की नमाज़-ए-जऩाजा सबसे पहले किसने पढ़ी?
*जवाब- हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत इसराफील अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत मीकाईल अलैहिस्सलाम ने फिर हजरत इजराईल अलैहिस्सलाम ने फरिश्तो के लश्कर के साथ पढ़ी उसके बाद सहाबऐ किराम और दूसरे लोगों ने पढ़ी।*
(ज़रक़ानी जिल्द 8 सफ़्हा 270/खसाइसुल कुबर जिल्द 2 सफ़्हा 73)

सवाल- क्या आपकी नमाज़-ए-जऩाजा में कोई इमाम न था सबने अलहदा-अलहदा पढ़ी?
*जवाब- इस बारे मे उलाम मुखतलिफ है कुछ के नजदीक यह नमाज मारूफ नहीं हुई बल्कि लोग गिरोह दर गिरो हाजिर आते और आप पर सलातो सलाम अर्ज़ करते और बहुत से उलाम यही नमाज मारूफ मानते है हजरत सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु अन्हु फितनों को दूर करते और उम्मत के इन्तेजाम में मशगूल जब तक उनके दस्ते हक परस्त पर बैअत न हुई लोग जमाअत दर जमाअत आते और जनाजऐ अकदस पर नमाज पढते जाते जब बैअत हो गई और हजरत सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु अन्हु वली-ए-शरई हो गऐ उन्होंने जनाजऐ मुकद्दस पर नमाज पढ़ ली उसके बाद फिर किसी ने न पढ़ी कि बाद नमाजे वली फिर नमाज लौटाने का इख्तियार नहीं।*
(फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 54)

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