RASOOL ALLAH Ke NAAM Ka ADAB

_*हुज़ूर  ﷺ के नाम का अदब*_
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_*👉🏽 आजकल अक्सर लोग हुज़ूरे अन्वर ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ के नामे मुबारक के साथ सलअम, अम और दुसरे निशान (जैसे स.अ.व., स.अ.स. S.A.W वग़ैरा-वग़ैरा) लगाते हैं!*_

_*👉🏽 इमाम जलालुद्दीन सुयूती ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ फ़रमाते हैं कि: "पहला वह शख़्स जिसने दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short किया  (यानी दुरूद शरीफ़ पूरा नही लिखा) उसका हाथ काटा गया !"*_

_*👉🏽अ़ल्लामा तहतावी का क़ौल हैं कि: "नामे मुबारक के साथ दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short लिखने वाला काफ़िर हो जाता हैं क्यूंकि अम्बियाए किराम ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﺍﻟﺼَّﻠٰﻮﺓُ ﻭَﺍﻟﺴَّﻠَﺎﻡٔ की शान को हल्का करना कुफ़्र हैं"!*_

_*📕 नुज़्हतुल कारी*_

_*✍🏻 वजाहत*_

_*⭐ इस क़ौल का मतलब ये हैं कि अगर कोई शख़्स अम्बियाए किराम ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﺍﻟﺼَّﻠٰﻮﺓُ ﻭَﺍﻟﺴَّﻠَﺎﻡٔ की शान को हल्का समझ कर या हल्का करने के लिए दुरूद शरीफ़ का ऐसा इख़्तिसार Short करता हैं तो वो काफ़िर हैं, और अगर काग़ज़ या वक़्त की बचत या सुस्ती की वजह से ऐसा करता हैं तो नाजाएज़ व सख़्त ह़राम हैं!*_

_*👉🏽 ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अम्जद अ़ली आज़मी ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ फ़रमाते हैं: उ़म्र में एक बार दुरूद शरीफ़ पढ़ना फ़र्ज़ हैं और जल्सए ज़िक्र में दुरूद शरीफ़ पढ़ना वाजिब चाहे खुद नामे अक़्दस लें या दुसरे से सुने! अगर एक मजलिस में 100 बार ज़िक्र आए तो हर बार दुरूद शरीफ़ पढ़ना चाहिए! अगर नामे अक़्दस लिया या सुना और दुरुदे पाक उस वक़्त न पढ़ा तो किसी दुसरे वक़्त में उसके बदले का पढ़ लें! नामे अक़्दस लिखे तो दुरूद शरीफ़ ज़रूर लिखे कि बाज़ उ़लमा के नज़दीक उस वक़्त दुरूद लिखना वाजिब हैं! अक्सर लोग आजकल दुरूद शरीफ़ (यानी मुकम्मल ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ लिखने) के बदले Short में ﺻﻠﻌﻢ، ﻋﻢ वग़ैरा लिखते हैं ये नाजाएज़ व सख़्त ह़राम हैं, यूंही ﺭَﺿِﻰَ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻨٔﻪ की जगह ﺭﺽ रदी., र.अ. वग़ैरा, इसी त़रह़ ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ की जगह ﺭﺡ रह., र.अ. वग़ैरा लिखते हैं ये भी न चाहिए"!*_

_*📕 बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा-3, सफ़ह़ा-101,102*_

_*👉🏽 अल्लाह ﻋَﺰَّﻭَﺟَﻞَّ का इस्मे मुबारक लिखकर उस पर * ﺝ * न लिखा करे "अज्जवज़ल", "जल्ले जलालहु" या तआ़ला पूरा लिखिए !*_

_*✍🏻 रह़मत से मह़रूम*_

_*⭐ एक शख़्स हुज़ूरे अक़्दस ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ का नामे पाक लिखता तो "सल्लल्लाहो अ़लैहे" लिखता "वसल्लम" न लिखता तो ताजदारे मदीना ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ ने ख़्वाब में उस पर इताब फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया कि: "तू खुद को 40 रह़मतों से महरूम रखता हैं !"*_
_*👉🏽 यानी लफ़्ज़ "वसल्लम" में 4 हुरूफ़ हैं और हर हर्फ़ के बदले 10 नेकियां हैं, लिहाज़ा इस हिसाब से 40 नेकियां होती हैं!*_

_*📕 तफ़्सीरे नई़मी*_

_*✍🏻 हाथ सड़ गया*_

_*⭐ ह़ज़रत शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी ﺭَﺣٔﻤَﺔُﺍﻟﻠّٰﻪِ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ "जज़्बे क़ुलूब" में फ़रमाते हैं कि: "एक शख़्स काग़ज़ की बचत के ख़याल से हुज़ूर ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ के नामे पाक के साथ दुरूद शरीफ़ नही लिखता था तो उसका हाथ सड़ने गलने लगा"!*_

_*📕सीरते रसूले अरबी*_

_*✍🏻 ईमान सल्ब हो गया*_

_*⭐ मन्कूल हैं, एक शख़्स को इन्तिक़ाल के बाद किसी ने ख़्वाब में सर पर मजूसियों (यानी आतिश परस्तों) की टोपी पहने हुए देखा तो इसका सबब पूछा, उसने जवाब दिया: "जब कभी मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠّٰﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟٰﻰ ﻋَﻠَﻴٔﻪِ ﻭَ ﺍٰﻟِﻪٖ ﻭَﺳَﻠَّﻢ का नामे मुबारक आता हैं तो दुरूद शरीफ़ न पढ़ता था इस गुनाह की नुहूसत से मुझसे मारेफ़त व ईमान सल्ब कर लिए गए"!*_

_*📕 सब्ए सनाबिल, सफ़ह़ा-35*_

_*अल्लाह ﻋَﺰَّﻭَﺟَﻞَّ हम सबको सह़ी त़ौर पर दुरुदे पाक पढ़ने और लिखने की त़ौफ़ीक़ अ़त़ा फरमाए*_
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