*वाक़्यात पढें की आला हज़रत की ज़िंदगी किस तरह हमें दर्स देती है ! वाक़्यात पढ़ कर गौर करें कि मसलके आला हज़रत आख़िर क्यों कहा जाता है ?*
*आला हज़रत की ग़ैबी मदद*
🌟मेरी उमर 19 साल की थी ! उस वक़्त रामपुर की रेल न थी, बैलगाड़ी पर सवार हो कर गया साथ मे औरतें भी थीं, रास्ता में दरिया पड़ा गाड़ी वाले ने ग़लती से बैलों को उसमे हांक दिया उसमें दलदल थी बैल पहुँचते ही घुटनों तक धंस गए और निसफ़ पहिया गाड़ी का, जितना बैल ज़ोर करते अंदर धँसते चले जाते थे अब में निहायत हैरान की साथ मे औरतें हैं उतर सकता नही की दलदल में खुद धंस जाने का अंदेशा !
💎इसी परेशानी मे था की एक बुढ़े आदमी जिनकी सूरते नूरानी और सफेद दाढ़ी थी न इस से पहले उन्हें देखा था, न जब से अब तक देखा तशरीफ़ लाये और फ़रमाया क्या है !
मेने तमाम वाक़या अर्ज़ किया फ़रमाया यह तो कोई बात नही ! गाड़ी वाले से फ़रमाया हाँक ! उसने कहा किधर हाँकू ! आप देखते हैं कि दलदल में गाड़ी फंसी है ! फ़रमाया अरे तुझे हांकना नही आता ! उधर को हाँक यह कह कर पहिया को हाथ लगाया फ़ौरन गाड़ी दलदल से निकल गयी ! ऐसी मउनतें तो बिहम्दिल्लाह तआला बहुत ज़ाईद हुईं !
*📚(फैज़ान ए आला हजरत, सफा 299)*
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