*【POST 145】घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना*

*_कुछ लोगों को देखा गया है कि वह इबादत व रियाज़त में लगे रहते हैं। इशराक,चाश्त,अव्वाबीन तहज्जुद की नमाज़ों को अदा करते, तस्बीह व वज़ीफे पढ़ते हैं और उनके बीवी बच्चे या बूढ़े और मुफलिस माँ बाप रोटी के टुकड़ों के लिए मुहताज और तेरा मेरा मुँह देखते नज़र  आते हैं। यह ऐसे लोगों की भूल है और वह नहीं जानते बन्दगाने खुदा में से हक वालों के हक अदा करना भी खुदाए तआला की इबादत और उसकी खुशनूदी हासिल करने का ज़रीया है। नफ्ल इबादत में मशगूलियत अगर बीवी बच्चों और मुफलिस माँ बाप के ज़रूरी इख़राजात से रोकती हो तो पहले बीवी बच्चों की किफ़ालत करे फिर वक़्त पाये तो नवाफिल में मशगूल हो। अलबत्ता पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ हरगिज़ किसी सूरत माफ नहीं, उसकी अदाएगी हर हाल हर एक पर निहायत लाज़िम व ज़रूरी है, ख़्वाह कैसे भी करे और कुछ भी करे।_*

_और आजकल इस दौर में अगर कोई शख्स सिर्फ फ़र्ज़ नमाजों को पाबन्दी के साथ बाजमाअत अदा करता हो, रमज़ान के रोज़े रखता हो अगर ज़कात फ़र्ज़ हो तो ज़कात निकालता हो, हज फर्ज़ हुआ हो तो ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार हज कर चुका हो, और हराम काम मसलन शराब, जुआ, चोरी, ज़िनाकारी ,सूदखोरी, गीबत व बदकारी खयानत व बदअहदी, सिनेमा, गाने बाजे और तमाशों वगैरह से बचता हो और हत्तल इमकान यानी जहाँ तक हो सके सुन्नतों का पाबन्द हो और इसके साथ साथ जाइज़ पेशे के ज़रीए बीवी बच्चों की किफालत करता हो और ईमान व अकीदा दुरुस्त रहे तो यकीनन वह अल्लाह वाला है,अल्लाह  तआला का प्यारा है और वह अल्लाह तआला का मुकद्दस नेक बन्दा है। ख्वाह वह नफ्ल नमाज़े और नफ़ली इबादत अदा न कर पाता हो, वज़ीफ़े और तस्वीह, इशराक व चाश्त व अवाबीन वगैरह में मशगूल न रहता हो।_

📖 _*हदीस पाक में है* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया- :" *फ़र्ज़ इबादत के बाद हलाल रोज़ी की तलाश फ़र्ज़ है।"*_

📕 *(मिश्कात शरीफ़ सफ़ा 242)*

*और फरमाते हैं :-"सबसे ज्यादा उम्दा व अफज़ल वह माल है जो तुम अपने घर वालों पर खर्च करो।"*

📘 *_(मिश्कात सफा 170)_*

_सदरुश्शरिया हज़रत मौलाना अमजद अली अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, 'इतना कमाना फर्ज़ है जो अपने लिए और अहल व अयाल के लिए और जिन का नफ़का उसके ज़िम्मे वाजिब है, उनके नफ़के के लिए और कर्ज़ अदा करने के लिए किफायत कर सके।"_

📗 *_(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)_*

*और फरमाते हैं, "क़दरे किफायत से ज़्यादा इसलिए कमाता है कि फुकरा व मसाकीन की ख़बरगीरी कर सके या करीबी रिश्तेदारों की मदद करे तो यह मुसतहब है और यह नपल इबादत से अफ़ज़ल है।”*

📗 *_(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)_*

_फिर फरमाते हैं जो लोग मसाजिद और खानकाहों में बैठ जाते हैं और बसर औकात (गुज़ारे) के लिए कुछ काम नहीं करते और खुद को मुतवक्किल बताते हैं हालांकि उनकी निगाहें इसकी।मुन्तज़िर रहती हैं कि कोई हमें कुछ दे जाये,वह मुतवक्किल नहीं। इससे बेहतर यह था कि वह कुछ काम करते और उससे बसर औकात यअनी गुजारा करते।_

*_इसी तरह आजकल बहुत से लोगों ने पीरी, मुरीदी को पेशा बना लिया है। सालाना मुरीदों में दौरा करते हैं और मुरीदों से तरह तरह की रकमें खसोटते हैं और उनमें कुछ ऐसे हैं कि झूट फ़रेब से भी काम लेते हैं, यह नाजइज़ है।_*

📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़ा 218)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,157 158 159*

No comments:

Post a Comment

Our Social Sites