*【POST 150】नस्ब और बिरादरी बदलना*

*_यह बीमारी भी काफ़ी आम हो गई है कि हैं किसी कौम और बिरादरी के और खुद को दूसरी कौम व बिरादरी का ज़ाहिर कर रहे हैं और चाहते हैं कि इस जरीए से बरतरीफज़ीलत और इज़्ज़त हासिल होगी हालांकि ऐसा करने से न इज़्ज़त मिलती है न फ़ज़ीलत। इज़्ज़त व जिल्लत तो अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है जिसे जो चाहता है अता फरमाता है। ये अपना नस्ब बदलने वाले बहुत बड़े बेवकूफ, अहमक, जाहिल, बेगैरत व बेशर्म हैं।_*

📖 _*हदीस शरीफ में है* कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो जानते हुए अपने बाप के सिवा दूसरे को अपना बाप बताये, उस पर जन्नत हराम है।_

📗 *(सहीह बुख़ारी जिल्द 2 सफ़ा 1001, सहीह मुस्लिम ,जिल्द 1 सफा 442)*

*और एक दूसरी हदीस में अपना नस्ब बदलने वाले और अपने बाप के अलावा किसी दूसरे को बाप बताने वालों के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उन पर अल्लाह तआला और फ़िरिश्तों और सारे लोगों की लानत है।*

📕 *_(सहीह मुस्लिम, जिल्द 1, सफ़ा 495)_*

_आजकल खुद को सय्यिद कहलाने और आले रसूल बनने का शौक बहुत ज़ोर पकड़ गया है। देखते ही देखते हज़ारों लाखों जो सय्यिद नहीं थे वह सय्यिद बन गये जिसकी वजह से अब सय्यिदों का इहतिराम भी मुश्किल होता जा रहा है क्यूंकि नकली सय्यिदों की भरमार है। खुद मेरी मालूमात में ऐसे काफ़ी लोग हैं। जो अब तक कुछ और थे और अब चालीस और पचास की उम्र में वह सय्यिद और।आले रसूल बन गये। ये सब बहुत बड़े वाले मक्कार और धोकेबाज़, फरेबी और जालसाज हैं जिन पर खुदाए तआला की लानत है।_

*_मुरादाबाद शहर में अभी जल्द ही एक मौलवी ने 55 साल की उम्र में खुद को आले रसूल और सय्यिद कहलवाना शुरू कर दिया है और कहता है कि मेरे पीर ने मुझे सय्यिद बना दिया गोया।कि सियादत के साथ मज़ाक हो रहा है।_*

_और इसमें काफ़ी दख़ल हमारी कौम के बाज़ अफ़राद की इस बेजा अकीदत का भी है कि उनकी नज़र में इल्म व अमल तकवा व तहारत की कोई कद्र नहीं बस जो किसी बड़े का बाप बेटा है वही कुछ है। हालाँकि इस्लामी नुक़्तए नज़र से और तो और खुद सादाते किराम, जिनका इहतिराम व अदब ईमान की पहचान है। आलिमे दीन जो तफसीर व हदीस व फ़िह का इल्म काफ़ी रखता हो वह उन सादात से अफ़ज़ल है जो आलिम न हों।_

📖 *हदीस में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :-*
_"जिसका अमल उसे पीछे ढकेल दे, वह नस्ब से आगे नहीं बढ़ सकता।"_

📙 *(सहीह मुस्लिम ,जिल्द 2, सफ़ा 345)*

_आलाहज़रत इमाम अहले सुन्नत मौलाना अहमद रज़ा खाँ साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं, फ़ज़्ले इल्म फज्ले नस्ब से अशरफ व आज़म है। सय्यिद साहब कि आलिम न हों अगरचे सालेह हों आलिम सुन्नी सहीहुल अक़ीदा के मरतबे को नहीं पहुँच सकते।_

📚 *(फतावा रजविया, जिल्द 9, सफ़ा 59)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,163 164 165*

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