*_आजकल आमतौर से लोग इस बात का ख्याल नहीं रखते। जानवरों पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ लाद देना और मार मार कर उन्हें चलाना, ज़ुल्म है। यूँ ही उन बेज़ुबानों के चारा पानी और गर्मी व जाड़े की फिक्र न करना भी ज़ुल्म है। दूध देने वाले जानवरों का सारा दूध खींच लेना और फिर उसके बच्चे को दिन दिन भर के लिए भूका प्यासा रखना ज़ुल्म है। ऐसा करने वाले ज़ालिम हैं और ये ज़्यादा कमाई और आमदनी के लिए ये सब करते हैं। लेकिन कमाई के बाद भी ऐसे लोग परेशान रहते हैं और उन्हें ज़िन्दगी में सुकून मयस्सर नहीं आता और हमेशा बेचैन व परेशान रहते हैं।_*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं:-_
*_जानवर से काम लेने में ज़रूरी है कि उसकी ताकत से ज़्यादा काम न लिया जाये। बाज़ यक्का और तांगे वाले इतनी ज़्यादा सवारियाँ बिठाते हैं कि घोड़ा मुसीबत में पड़ जाता है, यह नाजाइज़ है।_*
_जानवर पर जुल्म करना, ज़िम्मी काफ़िर पर जुल्म से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी काफिर पर ज़ुल्म मुसलमान पर ज़ुल्म करने से भी ज़्यादा बुरा है। क्यूंकि जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह तआला के सिवा नहीं। इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाये।_
📚 *(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफ़ा 285)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,168*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमह फरमाते हैं:-_
*_जानवर से काम लेने में ज़रूरी है कि उसकी ताकत से ज़्यादा काम न लिया जाये। बाज़ यक्का और तांगे वाले इतनी ज़्यादा सवारियाँ बिठाते हैं कि घोड़ा मुसीबत में पड़ जाता है, यह नाजाइज़ है।_*
_जानवर पर जुल्म करना, ज़िम्मी काफ़िर पर जुल्म से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी काफिर पर ज़ुल्म मुसलमान पर ज़ुल्म करने से भी ज़्यादा बुरा है। क्यूंकि जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह तआला के सिवा नहीं। इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाये।_
📚 *(बहारे शरीअत ,हिस्सा 16 सफ़ा 285)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,168*
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