*_उल्लू एक परिन्दा है जिसको लोग मनहूस ख्याल करते हैं। हालाँकि इस्लामी नुक्तए नज़र से यह एक गलत बात है। उल्लू को मनहूस ख्याल करना एक जाहिलाना अकीदा है।_*
*सहीह बुख़ारी की हदीस में है :*
_"रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:-_
*_छुआछूत कोई चीज नहीं, उल्लू में कोई नहूसत नहीं और सफ़र (चेहलम) का महीना भी मनहूस नहीं।"_*
📗 *(मिश्कात बाब उल फाल वत्तैर सफा 391)*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब फरमाते हैं :-_
*_‘हाम्मह' से मुराद उल्लू है। जमानए जाहिलियत में अहले अरब इसके मुतअल्लिक किस्म किस्म के ख्यालात रखते थे और अब भी लोग इसको मनहूस समझते हैं। जो कुछ भी हो हदीस ने इसके मुतअल्लिक हिदायत की कि इसका एतिबार न किया जाये। माहे सफ़र को लोग मनहूस जानते हैं, हदीस में फ़रमाया, यह कोई चीज़ नहीं।_*
📙 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफा 124)*
_खुलासा यह है कि उल्लू को मनहूस समझना गलत है। नफा नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह तबारक व तआला है। जो वह चाहता है, वही होता है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,169*
*सहीह बुख़ारी की हदीस में है :*
_"रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:-_
*_छुआछूत कोई चीज नहीं, उल्लू में कोई नहूसत नहीं और सफ़र (चेहलम) का महीना भी मनहूस नहीं।"_*
📗 *(मिश्कात बाब उल फाल वत्तैर सफा 391)*
_सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब फरमाते हैं :-_
*_‘हाम्मह' से मुराद उल्लू है। जमानए जाहिलियत में अहले अरब इसके मुतअल्लिक किस्म किस्म के ख्यालात रखते थे और अब भी लोग इसको मनहूस समझते हैं। जो कुछ भी हो हदीस ने इसके मुतअल्लिक हिदायत की कि इसका एतिबार न किया जाये। माहे सफ़र को लोग मनहूस जानते हैं, हदीस में फ़रमाया, यह कोई चीज़ नहीं।_*
📙 *(बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफा 124)*
_खुलासा यह है कि उल्लू को मनहूस समझना गलत है। नफा नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह तबारक व तआला है। जो वह चाहता है, वही होता है।_
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,169*
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