*_आज कल इस का काफी रिवाज़ हो गया,किसी बुज़ुर्ग के नाम का चिराग जला कर उस के सामने बैठते हैं। यह गलत है हाँ अगर इस चिराग जलाने का कोई मकसद हो इस से किसी राह गीर वगैरा को फाइदा पहुँचे या दीनी तालीम हासिल करने पढ़ने पढ़ाने वालो को राहत मिले या किसी जगह ज़िक्र व शुक्र इबादत व तिलावत करने वालों को इस से नफ़अ पहुँचे तो ऐसी रोशनियाँ करना बिलाशुबह जाइज़ बल्कि कारे सवाब है और जब इस में सवाब है तो उस से किसी बुज़ुर्ग की रूहे पाक को सवाब पहुँचाने की नियत भी की जा सकती है आमाल और वजाइफ की किताबों में जो आसेब वगैरा के इलाज़ के लिए छोटा चिराग और बड़ा चिराग रोशन करने के लिए लिखा है वह अलग चीज़ है वह किसी बुज़ुर्ग के नाम से नहीं रोशन किया जाता।_*
_खुलासा यह है कि यह जो हुज़ूर गौसे पाक रदियल्लाहु तआला अन्हु वगैरा किसी बुज़ुर्ग के नाम के चिराग जला कर उस के सामने बैठने का मामूल है यह बे सनद बे सुबूत बे मकसद है और बे असल है।_
📖 *_हदीस पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः_*
_जो हमारे दीन में कोई ऐसी बात निकाले जिस की उस में असल न हो तो वह कबूल नहीं है।_
📚 *(इब्ने माजा 3 हदीस 17)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,196*
_खुलासा यह है कि यह जो हुज़ूर गौसे पाक रदियल्लाहु तआला अन्हु वगैरा किसी बुज़ुर्ग के नाम के चिराग जला कर उस के सामने बैठने का मामूल है यह बे सनद बे सुबूत बे मकसद है और बे असल है।_
📖 *_हदीस पाक में है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः_*
_जो हमारे दीन में कोई ऐसी बात निकाले जिस की उस में असल न हो तो वह कबूल नहीं है।_
📚 *(इब्ने माजा 3 हदीस 17)*
📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा,196*
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