*【POST 47】कमसिन बच्चों को मस्जिद मे लाना*

*_ज़्यादा छोटे ना समझ कमसिन बच्चों का मस्जिद मे आना या उन्हें लाना शरअन नापसन्दीदा नाजाइज व मकरूह है। कुछ लौग औलाद से बे जा मुहब्बत करने वाले नमाज़ के लिए। मस्जिद मे आते है। तो अपने साथ कमसिन नासमझ बच्चों को भी लाये है। यहाँ तक कि बाज़ लोग उन्हें आगली सफो मे अपने बराबर नमाज़ मे खड़ा कर लेते है। यह तो निहायत ग़लत बात है। और इससे पिछली सफो के सारे नमाज़ियों की नमाज़ मकरूह होती है। और उसका गुनाह उस लाने और बराबर मे खड़ा करने वाले पर है। और उन पर जो उससे हत्तल मक़दूर मना न करें हाँ जो समझदार होशियार बच्चे हो नमाज़ के आदाब से वाकिफ़ पाकी और नापाकी को जानते हो उनको आना चाहिए और उनकी सफ़ मस्जिद मे बालिग मर्दों से पीछे होना चाहिए। और ज़्यादा छोटे जो नमाज़ को भी एक तरह काखेल समझते और मस्जिद मे शोर मचाते ख़ुद भी नहीं  पढ़ते अंर दूसरों की नमाज़ भी खराब करते है। एसे बच्चों को सख़्ती के साथ मस्जिद में आने से रोकना ज़रूरी है।_*
   
📖 *हदीस मे है। फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने*
 
*_"अपनी मस्जिदों को बचाओ बच्चों से पागलों से खरीदने और बेचने से और झगड़े करने से और ज़ोर ज़ोर से बोलने से।_*

📘 *(इब्ने माजा,बाबा मा यकरहु फ़िल मस्जिद सफ़ा 55)*

*_यानी यह सब बाते मस्जिद मे नाजाइज व गुनाह है।_*

*सदरूश्शरीआं हजरत मौलाना अमजद अली साहब आज़मी अलैहिर्रहमह लिखते है।*

*_"बच्चे और पागल को जिन से नजासत का गुमान हो मस्जिद मे ले जाना हराम है। वरना मकरूह।_*
       
📗 *(बहारे शरीअत हिस्सा सोम सफ़ा 182)*
   
*कुछ लोग कहते हॅ। कि बच्चे मस्जिद मे नही आयेंगे तो नमाज़ सीखेगे केसे तो भाईयों समझदार बच्चों के सीखने के लिए मस्जिद है। और नासमझ ज़्यादा छोटे बच्चों के लिए घर और मदरसे है। और हदीसे रसूल के आगे अपनी नहीं चलाना चाहिए।*

📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 48 49*

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