*【POST 48】मस्जिदों को सजाना इमामों को सताना*

*आजकल काफ़ी देखा गया है कि लोग मस्जिदों को सजाने सँवारने में खूब पैसा खर्च करते हैं और इमामों, मौलवियों को सताते, उन्हें तंग और परेशान रखते हैं, और कम से कम पैसों में काम चलाना चाहते हैं। जिसकी वजह से वह सजीसँवरी खूबसूरत मस्जिदें कभी कभी वीरान सी हो जाती हैं और उनमें वक्त पर अज़ान व नमाज़ नहीं हो पाती।_*

*इस बयान से हमारा मकसद यह नहीं है कि मस्जिदों को सजाना और खूबसूरत बनाना मना है। बल्कि यह बताना है कि किसी भी मस्जिद की असली खूबसूरती यह है कि उसमें दीनदार, खुदाए तआला का ख़ौफ़ रखने वाला, लोगों को हुस्न व खूबी और हिकमत व दानाई के साथ दीन की बातें बताने वाला आलिमे दीन इमामत करता हो चाहे वह मस्जिद कच्ची और सादा सी इमारत हो। किसी मस्जिद के लिए अगर नेक और सही इमाम मिल जाये तो लोगों को चाहिए कि उसको हर तरह खुश रखेंउसका खूब ख्याल रखें । बल्कि पीरों से भी ज़्यादा आलिमों, मौलवियों, इमामों और मुदर्रेसीन का ख्याल रखा जाये क्यूंकि दीन की बका और इस्लाम की हिफ़ाज़त इल्म वालों से है। अगर इमामों और मौलवियों को परेशान रखा गया तो वो दिन दूर नहीं कि मस्जिदें और मदरसे या तो वीरान हो जायेंगे या उनमें सबसे घटिया किस्म के लोग इमामतें करेंगे और बच्चों को पढ़ायेंगे। अच्छे घरानों और अच्छे ज़हन व फिक्र रखने वाले लोग इस लाइन से दूर हो जायेंगे।*

*_खुलासा यह कि आलिमों और मौलवियों को चाहिए वो पैसे और माल व दौलत का लालच किये बगैर दीन की खिदमत करें और कौम को चाहिए कि वह अपने आलिमों, मौलवियों और दीन की ख़िदमत करने वालों को खुशहाल रखे। उन्हें तंगदस्त और परेशान न होने दे और हमारी राय में आजकल शादीशुदा बैरूनी (बाहर के) इमामों के लिए रिहाइशी मकानों का बन्दोबरत कर देना निहायत जरूरी है ताकि उन्हें बार बार घर न भागना पड़े और वो नमाजों को पढ़ाने में पाबन्दी कर सकें और अंगुश्तनुमाईयों, बदरगुमानियों से महफूज रहें।_*

📚 *गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफहा, 50 51*

📍 *Note :-  जब भी मस्जिद जाए और मस्जिद के अन्दर क़दम रखे पहले दाखिले मस्जिद होने की दुआ पढ़े और एतकाफ की नियत करे।*

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