सवाल- हजरते अली मुर्तजा रजियल्लाहु तआला अन्हु की विलायत किस दिन और किस तारीख को हुई?
*जवाब- आपकी विलायत मक्का मुअज्जमा में आमुल फील के तीस साल बाद बरोज जुमा 13रजब को हुई।*
(अवराके ग़म सफ्हा146/नजहतुल मजालिस जिल्द11सफ्हा5)
सवाल- हजरते अली मुर्तजा रजियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद और वालिदा का नाम क्या है?
*जवाब- आपके वालिद का नाम अबु तालिब और वालिदा का नाम फातिमा बिन्ते असद है।*
(मदारिजुन्नबुव्वत जिल्द2सफ्हा917)
सवाल- हजरते अली मुर्तजा रजियल्लाहु तआला अन्हु की विलायत किस जगह हुई और आपकी विलायत का वकिया क्या है?
*जवाब- अहले सैर कहते हैं आपकी विलायत जौफें काबा मे हुई आपकी विलायत का वकिया खुद आपकी वालिदा साहिबा यून बयान करती है में खाना-ए-काबा में तवाफ में मशगूल थी तीन चक्कर इत्मीनान से पूरे कर चूंकि थी चौथा चक्कर कर रही थी कि दर्दे जह शुरू हुआ हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मेरे चेहरे के बदलाव से मुझे पहचाना और फरमाया क्या बात है जो आपका रंग बदल रहा है मेने अर्जे हाल किया हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया तवाफ पूरा करलो अगर इसी हालत मे दर्द बढ़ जाए तो अंदरूने काबा मे चली जाना कि इस में कोई हिम्मते इलाही है*
*साहिबे बशाइरूल मुस्तफा नक़ल फ़रमाते हैं कि हजरते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब और चंद कबीला बनी अब्दुल उज़्ज़ा के लोगों के साथ मस्जिदे हराम में बैठे हुए थे कि फातिमा बिन्ते असद रजियल्लाहु तआला अन्हा मस्जिद में आयीं और उनको नवां महीना था जब वह मशगूले तवाफ हुई तो चौथे चक्कर में चलने की कुव्वत न रही तो आप पुकारने लगीं ऐ खुदा वंदे काबा काबे की हुरमत से इस विलायत को मुझपर आसान फरमा एक लख्त दीवार काबा शक़ हुई और फ़ातिमा बिन्ते असद अंदरूने काबा तशरीफ ले गयीं और हमारी नज़रो से गायब हो गई हमने अंदरूने काबा आपको तलाश किया मगर न मिलीं चौथे रोज आप खाना-ए-काबा से बाहर तशरीफ लायीं और हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु को गोद में लिए हुए थीं।*
(अवराके ग़म सफ़्हा148)
सवाल- हज़रते अली रजियल्लाहु तआला अन्हु का अली और हैदर किसने रखा?
*जवाब- अहले सैर कहते हैं कि आपकी वालिदा ने हैदर रखा जब अबु तालिब तशरीफ लाए तो उन्होंने यह नाम नापसंद किया और आपका नाम अली रखा और हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने आपका नाम सिद्दीक रखा जैसा कि रियाजुन्नजर में है।*
(मदारिजुन्नबुव्वत जिल्द2 सफ़्हा917)
◆________________________________◆
*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)
*जवाब- आपकी विलायत मक्का मुअज्जमा में आमुल फील के तीस साल बाद बरोज जुमा 13रजब को हुई।*
(अवराके ग़म सफ्हा146/नजहतुल मजालिस जिल्द11सफ्हा5)
सवाल- हजरते अली मुर्तजा रजियल्लाहु तआला अन्हु के वालिद और वालिदा का नाम क्या है?
*जवाब- आपके वालिद का नाम अबु तालिब और वालिदा का नाम फातिमा बिन्ते असद है।*
(मदारिजुन्नबुव्वत जिल्द2सफ्हा917)
सवाल- हजरते अली मुर्तजा रजियल्लाहु तआला अन्हु की विलायत किस जगह हुई और आपकी विलायत का वकिया क्या है?
*जवाब- अहले सैर कहते हैं आपकी विलायत जौफें काबा मे हुई आपकी विलायत का वकिया खुद आपकी वालिदा साहिबा यून बयान करती है में खाना-ए-काबा में तवाफ में मशगूल थी तीन चक्कर इत्मीनान से पूरे कर चूंकि थी चौथा चक्कर कर रही थी कि दर्दे जह शुरू हुआ हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने मेरे चेहरे के बदलाव से मुझे पहचाना और फरमाया क्या बात है जो आपका रंग बदल रहा है मेने अर्जे हाल किया हुजूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया तवाफ पूरा करलो अगर इसी हालत मे दर्द बढ़ जाए तो अंदरूने काबा मे चली जाना कि इस में कोई हिम्मते इलाही है*
*साहिबे बशाइरूल मुस्तफा नक़ल फ़रमाते हैं कि हजरते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब और चंद कबीला बनी अब्दुल उज़्ज़ा के लोगों के साथ मस्जिदे हराम में बैठे हुए थे कि फातिमा बिन्ते असद रजियल्लाहु तआला अन्हा मस्जिद में आयीं और उनको नवां महीना था जब वह मशगूले तवाफ हुई तो चौथे चक्कर में चलने की कुव्वत न रही तो आप पुकारने लगीं ऐ खुदा वंदे काबा काबे की हुरमत से इस विलायत को मुझपर आसान फरमा एक लख्त दीवार काबा शक़ हुई और फ़ातिमा बिन्ते असद अंदरूने काबा तशरीफ ले गयीं और हमारी नज़रो से गायब हो गई हमने अंदरूने काबा आपको तलाश किया मगर न मिलीं चौथे रोज आप खाना-ए-काबा से बाहर तशरीफ लायीं और हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु को गोद में लिए हुए थीं।*
(अवराके ग़म सफ़्हा148)
सवाल- हज़रते अली रजियल्लाहु तआला अन्हु का अली और हैदर किसने रखा?
*जवाब- अहले सैर कहते हैं कि आपकी वालिदा ने हैदर रखा जब अबु तालिब तशरीफ लाए तो उन्होंने यह नाम नापसंद किया और आपका नाम अली रखा और हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने आपका नाम सिद्दीक रखा जैसा कि रियाजुन्नजर में है।*
(मदारिजुन्नबुव्वत जिल्द2 सफ़्हा917)
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*हदीसे पाक में है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता।*
(क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100)
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