*इज़हार ए हक़ीक़त*
❓बाज़ लोग यह कहते हैं कि इमाम आज़म अबू हनीफ़ा ओर हुज़ूर गौस ए आज़म रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुमा का मकाम व मरतबा आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी से बढ़ कर है अगर कहना ही था तो *मसलके इमाम आज़म* या *मसलके गौसे आज़म* कहा जाता ?
✅इसका जवाब यही दिया जाता है कि अगर ऐसी सूरत में मसलके इमाम आज़म कहा जाता तो गुमराह व बद्दीन फ़िरके ओर खुश अक़ीदा मुसलमानों के दरमियान फ़र्क़ और इम्तियाज़ दुश्वार हो जाता !
✨यही वजह है कि मसलके इमाम आज़म नही कहा जाता क्योंकि बद अक़ीदा और देवबन्दी लोग भी अपने को हन्फ़ी ओर मसलके इमाम आज़म का पैरु कहलाते हैं! इसी तरह मसलके गौस आज़म भी नही कहा क्योंकि बाज़ गुमराह मुल्हिद ओर खुराफाती लोग भी मशरबी ऐतबार से अपने को क़ादरी वगैरह कहलवाते हैं !
*💫मसलके आला हजरत* की सदाक़त व हक़ीक़त ओर उसकी शरई हैसियत यही है इस पर बेज़ा कलाम की कोई गुंजाइश नही है, इस पर एतराज व अंगुश्त नुमाई करना मसलके हक़ से बगावत करना है !
🌍छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंधप्रदेश और आसपास के शहरों के लाखों मुरीदों के *कामिल पीर हज़रत अश्शाह मुफ़्ती मुहम्मद सिबतेंन रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह* फ़रमाते थे-
*मसलके आला हजरत* हमारे अकबीरीन का पसन्दीदा नारा है, इसकी मुखालफ़्त किसी शैतानी वसवसे से कम नही !
*➡फैज़ान ए आला हजरत अभी ज़ारी है---*
*पढें जल्द अगली पोस्ट*
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