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*_▶ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा 💡_*
_*⤵ इश्के रसूल*_
मेरे आक़ा आला हज़रत अलैहिर्रहमा अपने इल्म, अमल, व इश्के रसूल के बिना पर पहचाने जाते हैं। आप ऐसे आशिके रसूल थे जिसकी मिसाल दुनिया पेश नई कर सकती। आप का नातिया दीवान "हदाईके बख्शीश शरीफ" इस अम्र का शाहिद है। आप की नाके कलम बल्कि गहराइये क़ल्ब से निकला हुवा हर मिसरा मुस्तफा जाने रहमत से आप की बे पाया अक़ीदत व महब्बत की शहादत देता है।
आप ने कभी दुनियावी ताजदार की खुशामद के लिये कोई कसीदा नही लिखा, इस लिये के आप हुज़ूरे ताजदारे रिसालत की इताअत व गुलामी को पहुंचे हुए थे, इस का इज़हार आप ने एक शेर में इस तरह फ़रमाया :
*उन्हें जाना उन्हें माना न रखा गैर से काम*
*लिल्लाहिल हम्द में दुन्या से मुसलमान गया*
एक मर्तबा रियासत नानपारा (जिला बहराइच यूपी) के नवाब की तारीफ़ में शुअरा ने कसीदे लिखे। कुछ लोगो ने आप से भी गुज़ारिश की के हज़रत आप भी नवाब साहिब की तारीफ़ में कोई कसीदा लिख दे। आप ने इस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिसका मतलअ ये है:-
*वो कलामे हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नही*
*ये फूल खार से दूर है ये शमा है के धुँआ नही*
*करूँ मदहे अहले दुअल रज़ा, पड़े इस बला में मेरी बला*
*मैं गदा हूँ अपने करीम का, मेरा दीन परा-ए-नान नही।।*
*_⤵शरहे कलामे रज़ा_*
मेरे आक़ा महबूबे रब्बे जुल जलाल का हुस्नो जमाल दरजाए कमाल तक पहुचता है, यानी हर तरह से कामिल व मुकम्मल है इस में कोई खामी होना तो दूर की बात है, खामी का तसव्वुर तक नही हो सकता, हर फूल की शाख में काटे होते है मगर गुलशने आमिना का एक येही महकता फूल ऐसा है जो काटो से पाक है, हर शमा में ऐब होता है के वो धुँआ छोड़ती है मगर आप बज़मे रिसालत की ऐसी रोशन शमा है के धुंए (यानी हर तरह) से बे ऐब है.
*📚तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 11*
*_▶ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा 💡_*
_*⤵ इश्के रसूल*_
मेरे आक़ा आला हज़रत अलैहिर्रहमा अपने इल्म, अमल, व इश्के रसूल के बिना पर पहचाने जाते हैं। आप ऐसे आशिके रसूल थे जिसकी मिसाल दुनिया पेश नई कर सकती। आप का नातिया दीवान "हदाईके बख्शीश शरीफ" इस अम्र का शाहिद है। आप की नाके कलम बल्कि गहराइये क़ल्ब से निकला हुवा हर मिसरा मुस्तफा जाने रहमत से आप की बे पाया अक़ीदत व महब्बत की शहादत देता है।
आप ने कभी दुनियावी ताजदार की खुशामद के लिये कोई कसीदा नही लिखा, इस लिये के आप हुज़ूरे ताजदारे रिसालत की इताअत व गुलामी को पहुंचे हुए थे, इस का इज़हार आप ने एक शेर में इस तरह फ़रमाया :
*उन्हें जाना उन्हें माना न रखा गैर से काम*
*लिल्लाहिल हम्द में दुन्या से मुसलमान गया*
एक मर्तबा रियासत नानपारा (जिला बहराइच यूपी) के नवाब की तारीफ़ में शुअरा ने कसीदे लिखे। कुछ लोगो ने आप से भी गुज़ारिश की के हज़रत आप भी नवाब साहिब की तारीफ़ में कोई कसीदा लिख दे। आप ने इस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिसका मतलअ ये है:-
*वो कलामे हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नही*
*ये फूल खार से दूर है ये शमा है के धुँआ नही*
*करूँ मदहे अहले दुअल रज़ा, पड़े इस बला में मेरी बला*
*मैं गदा हूँ अपने करीम का, मेरा दीन परा-ए-नान नही।।*
*_⤵शरहे कलामे रज़ा_*
मेरे आक़ा महबूबे रब्बे जुल जलाल का हुस्नो जमाल दरजाए कमाल तक पहुचता है, यानी हर तरह से कामिल व मुकम्मल है इस में कोई खामी होना तो दूर की बात है, खामी का तसव्वुर तक नही हो सकता, हर फूल की शाख में काटे होते है मगर गुलशने आमिना का एक येही महकता फूल ऐसा है जो काटो से पाक है, हर शमा में ऐब होता है के वो धुँआ छोड़ती है मगर आप बज़मे रिसालत की ऐसी रोशन शमा है के धुंए (यानी हर तरह) से बे ऐब है.
*📚तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 11*
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