*POST NO..::-08*

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*_▶ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा 💡_*
_*⤵ ट्रेन रुकी रही*_

     हज़रत अय्यूब अली शाह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हे के मेरे आक़ा आला हज़रत अलैहिर्रहमा एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहाँ गाडी सिर्फ 2 मिनिट के लिये ठहरती है।

     मगरिब का वक़्त हो चूका था, आप ने गाडी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फरमा कर गाडी के अंदर ही निय्यत बांध ली, गालिबन 5 शख्सों ने इक्तिदा की उनमे मैं भी था लेकिन अभी शरीके जमाअत नही होने पाया था के मेरी नज़र गैर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा हरा झण्डा हिला रहा था, मैने खिड़की से झांक कर देखा के लाइन क्लियर थी और गाडी छूट रही थी, मगर गाडी न चली और हुज़ूर आला हज़रत ने ब इत्मिनान तीनो फ़र्ज़ रकाअत अदा की और जिस वक़्त दाई जानिब सलाम फेरा था गाडी चल दी। मुक्तदियो की ज़बान से बे साख्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।

     इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाडी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाडी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाडी में अदा करता है।
*📚हयाते आला हज़रत, 3/189*
*📚तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 17*


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